रज्जोक भैया रमण २ वर्ष पर गाम एलैक – प्रकाश कमतीक धारावाहिक केर भाग १

कथा

– प्रकाश कमती

दू बहिन आ एकटा भाइमे रज्जो सभसँ छोट बच्चे सँ बड्ड मेहनतिया आ फुर्तीली छल। देखै-सुनै मे जहिना रूपवती तहिना स्वभाव सँ खूब सुशील आ सभ्य विचारके परिचायक छल रज्जो। रज्जो केँ सभसँ पैघ भाई रमण आ ओकरा सँ छोट बहिनक नाम गीता छलैक। रमण आ गीता सेहो स्वभाव सँ नीक विचारक छल। गरीब घरमे जन्म भेलाक कारणे तीनू भाई-बहीनकेँ पढनाय-लिखनाय सँ दूर-दूर धरि कउनो रिश्ता-नाता नहि छलैक। रज्जो केँ असली नाम रमा छलैक मुदा घरमे सभ दुलार सँ रज्जो कहि संबोधन करैत छलैक। रज्जो केँ बाबू गामेमे दीनानाथ बाबू ओतहि खेतमे मजदूरी कय कहूना परिवारक गुजर-बसर करैत छल आ माय बचपने मे स्वर्ग सिधारि चुकल छलैक। गरीबी तर मे दबल अहि परिवारक स्थिति बड्ड दयनीय छलैक।

किछुदिनक बाद दीनानाथ बाबू केर दयादृष्टि सँ पैघ बहिन केँ विवाह एकटा नीक आ सुखी-सम्पन्न घरमे कहूना भए गेलैक। आब बेटा कतहु परदेश जा घरक जिम्मेदारी उठा लियै ई चिंतामे रज्जो केँ बाबू सदिखन चिंतित रहैत छल। घरक गरीबीक आ बाबू केँ चिंता मे देखि रमण सेहो दुःखी रहैत छल। सदिखन सोचैत रहैत छल जे कउनो नोकरी-चाकरी कय घरक समस्याक निदान करी। खूब सोचि-विचारि केलाक बाद रमण गामेके एकटा पड़ोसी संगे दिल्ली चलि गेल। ओतहि गामक पड़ोसी केँ सहयोग सँ एकटा कम्पनीमे काज करै लागल। पढ़ल-लिखल नहि रहला सँ कतेक तकलीफ होएत छैक तकर एहसास रमण केँ ओहि कम्पनीमे खूब अखरलैक। आब रमण केँ मजदूरी कयलासँ घरक स्थितिमे पहिने सँ कनेक सुधार होमए लागल छलैक। गरीबी आ दुःखक दिन शनै: शनै: घटै लागल छलै। रमण केँ बाबू पहिने सँ बेसी प्रसन्नचित रहै लागल छल। मोने-मोन भगवानकेँ धन्यवाद करैत रहै छल। दू बरखक बाद रमणकेँ गामक यैद एलै आ ओ अपन बाबू केँ गाम एबाक समाद फोन कय कहलक।

“आह, कियैक ने 2 बरख भए गेलह दिल्ली गेला…” रमण केँ बाबू चीत्कार करैत बाजल। “तोरा सँ भरि मोन गप केला जमाना भए गेल, हमरो बड्ड मोन करैय तोरा देखबाक। रज्जो सेहो बड्ड यैद करैत रहै छौ। राखी आ भरदुतियामे तोहर कमी रज्जो केँ बड्ड अखरैत छै बाबू। गामक संगी-सहेली सभकेँ अपन भाई संगे अहि दुनू पावैन मे देखि रज्जो बफाइर तोरि कानै लागैत छौ।” ई सभ सुनि रमण खूब भावुक भए गेल, कनिकालक लेल जेना बौक भए गेल छल। व्याकुल छल, होएत छलै जे कखन भागिकय गाम चलि जाय आ रज्जो केँ भरि मोन देखी। मुदा रमण आब परदेशी छल, चाहियोकय अपन मोनक नहि कय सकैत छल। बेवश भए कखनो अपन निर्धनता केँ तs कखनो अपन कपार केँ एहिलेल दोख दैत छल। हिम्मत जुटा भारी मोनसँ रमण बाजल, “ठीक छै बाबू, हम जल्दिये गामक टिकस कटा लैत छी, सेठजी केँ सेहो कहै पड़त छुट्टी लेल।” बाबू केँ एतेक भरोस दैत रमण फोन काटि देलक।

फोन पर बाबू संग भेल गप सभ बेर-बेर रमण केँ जेना बेचैन करैत छल। राखी आ भरद्वितीयाक स्मरण मात्र सँ रज्जो लेल हकैरकय रमण कानै लागैत छल। आब गाम जल्दी कोना जाय ताहिलेल रमण सोचै लागल। सेठजी छुट्टी देताह कि नहि, जौं नहि देताह तखन गाम कोना जायब, रमणकेँ ई सभ प्रश्न भीतरे-भीतर खेने जा रहल छल। अन्तमे देखल जेतै ठानि गाम जेबाक अछि ताहिलेल 1 मासक छुट्टी चाही, समाद लs सेठजी लनि रमण पहुँचल। सेठ सेहो नीक आ दयालु प्रवृत्ति केँ लोक छलै, ओनाहू रमण केँ 2 बरख गामसँ दिल्ली अयला भए गेल छलैक। ई सभ देखि सेठजी गामसँ जल्दी लौटबाक गप कहैत रमण केँ 1 मासक छुट्टी दs देलक। खुशीक मारे रमण केँ चेहरा देखै योग्य छल। ई खुशीक गप आ गाम एबाक लेल 1 मासक भेटल छुट्टी केँ समाद रज्जो आ बाबूकेँ बतेबाक लेल रमण फेरो गाम बाबूकेँ फोन कयलक। एहिबेर रमण खूब खुशी आ प्रसन्नताके संग बाबूकेँ सभ समाद कहलक। बाबुओ खूब खुश भेल आ रज्जो सेहो भाई सँ भेंटबाक उत्सुकता केँ साफल होएत देखि प्रसन्न छल।

बेस 15 दिनक बाद जेखन रमण गाम एलै तs बाबू केँ चेहरा पर खुशीक ठेकान नहि छलै, प्रसन्नता सँ मोन तिरपित छलै आय। रज्जो सेहो खुबरास तरूआ-तरकारी आ नाना प्रकारक व्यंजन सभ बनाकय तैयार कयने छल अपन भाई लेल। गामघरक संगी-साथी सभ सेहो रमण केँ दरबज्जा पर दस्तक देनाय शुरू कय देने छल। समूचा गाममे रमण केँ गाम एबाक खुशीके लहैर लुत्ती जेँका पसरि गेल छलै। बौआ थाकल हेबह, नहा-धोकय खेनाइ खा लैह आ आराम करहs। तोरे पसिनक तरूआ-तरकारी सभ रज्जो बनेने छह, बेचारी भिनसरे सँ अफशियांत छल आय, रमण केँ बाबू बाजैत दालान दिस चलि गेलाह।

क्रमशः – प्रकाश