सिर्फ पुत भऽ गेला सँ माय-बापक उद्धार भऽ जाइत छैक की? – रूबी झा लिखित मार्मिक लघुकथा

लघुकथा

– रूबी झा

तोरा त बेटो नै छौ, तोहर दुनू प्राणी के उद्धार कना हेतौ? दिन राति कमला अपन जेठ दियादनी के कहैत रहैय छलखिन्ह, “तूँ खेत-पथार कि अपन नामे लय छैं, हैत त हमरे बेटा के। हमरे घरवाला के नामे ल ले न। आगि के देतहु? श्राद्ध-कर्म के करतहु? बरषी-तिथी के करतहु? बेटी के दुरागमन मे संगे के जेतहु? बेटी के सासूर झोरा-मोटरी ल ल क के जेतहु? नाति के उपनयन में झोरा के टंगतौ? मड़वा पर लाल धोती पहिर के ठाढ हेतहु? बेटी के सासूर नोत लेबऽ ककरा पठेबहीन? सबटा में त हमरे आशा हेतहु गे निपुत्रयाही। केहेन पापी छैं जे एकटा भगवती सोन धन (बेटा) नैह देलखुन्ह। हमरा देख तीनटा बेटा के माय छी।” इन्दीला सब बात दियादनी के सुनि भूकुड़-भूकुड़ कानि नोर पोछि लय छलैथ। इन्दिला के दुनू बेटी चुपचाप सब किछु सुनैत रहैय छलखिन्ह, आ अपन दिन दुनियाँ में लागल रहैय छलैथ। माय के कहैय छलखिन्ह माय अहाँ दुखी नहि होउ। हमरा दुनू बहिन सँ अहाँ केँ सब मनोरथ पूर्ण हैत से हम दुनू बहिन अहाँ दुनू गोटे स वादा करैय छी। आब हम दुनू बहिन एक दोसर के राखी बान्हि लेब, भरदुतिया में नोत ल लेब, अहाँ केँ काकी बड गरियाबैत छैथि। आब हम दुनू बहिन हुनका दुवैर पर कहियो नैह जैब और नैह हुनका टोकबैन कहियो। इन्दिला के दुनू बेटी खूब मोन लगा क पढाई करय छलैथ, संग में घरक काज में माय केँ हाथ सेहो बटबैत छलखिन्ह। और कमला केर तीनू बेटा भरि दिन छिछियैत-बौवैत रहै छलैन। पढाई-लिखाइ में त एको रत्ति मोन नै लागै छलैन। सब दिन उपरागे भरि गाम स आबैत रहैत छलैन। समय बितल। इन्दिला के दुनू बेटी पढि-लिखि क सरकारी आला-अधिकारी बनि गेलैन। आ कमला के तीनू बेटा एक नम्बर के निकम्मा। हम पाठक सब पर छोड़ि रहल छी जे बतबै जाय-जाउ, सिर्फ पुत भेला स माय-बापक उद्धार भ जाय छै की? संस्कारी और शिक्षित संतान जे किछु भी हुयै ओकरा स उद्धार होय छै से हमर मोन कहैत अछि।