इतिहास केँ कथमपि नकारिकय आगू नहि बढी हमरा लोकनि

विश्वक एक प्राचीनतम सभ्यताक नाम थिक मिथिला। एतुका वासिन्दा केँ मैथिल राजा सँ मैथिल पहिचान भेटल। एहि ठामक समस्त परम्परा मे आध्यात्मिकताक रस बोरल भेटैछ। जीवन प्रणाली, घर-गृहस्थी, पूजा-पाठ, जन्म सँ मृत्युक बीच केर विभिन्न संस्कार – हर बात मे वेद अनुसार वर्णन कयल सिद्धान्त पर जीवन संचालित भेटैत अछि। लेकिन शनैः-शनैः एतय सेहो आध्यात्मिकताक परित्याग कय भौतिकताक अपनेबाक दृष्टान्त बहुत तेजी सँ बढल देखाइत य। कारण बहुत रास भऽ सकैछ, लेकिन परिवर्तनक तीव्र गति आ मौलिकता सँ नितान्त दूर गमन करबाक प्रवृत्ति चिन्तनीय अवस्था मे कहल जा सकैत छैक। बहुत रास कारण मध्य एक गोट महत्वपूर्ण कारण छैक जे अपन मूल माटि-पानि सँ प्रव्रजन करबाक बाध्यता एहि ठामक लोक केँ अपन मुख्य धर्म सँ दूर आब नव स्थान, नव समाज आ नव भाषा-संस्कृति मे रमि जेबाक स्वाभाविक प्रक्रिया मे मौलिकता सँ दूर कय रहल छैक। तेजी सँ भऽ रहल धर्मक्षरण सँ बचेबाक लेल सामाजिक-साहित्यिक चिन्तन सेहो देखल जा सकैत अछि मुदा तेकर परिमाण आ प्रभाव बड बेसी सार्थक होइत नहि देखा रहल अछि। हँ, तखन दूरहु देश मे नव मिथिला बसेबाक आर यथासंभव अपन संस्कृति केँ पुनर्नवीकरण करबाक यदा-कदा उदाहरण जरूर देखल जा रहल य। लेकिन, ई संरक्षणक संज्ञान जाहि तरहें हर जाति – हर समुदाय मे हेबाक चाही से समान नहि अछि आर केवल अल्पसंख्यक पढल-लिखल व विज्ञ समुदाय एहि तरहक रिवाइवल लेल आगू बढैत देखल जा रहल अछि जेकर संख्या नगण्य कहि सकैत छी। बेसी लोक अपन समृद्ध सभ्यता तथा ओहि सँ जुड़ल स्मृति केँ केवल ‘इतिहास’ केर हिस्सा बुझि इतिहासहि धरि सीमित राखबाक भावना व्यक्त करैत छथि। एकरा कहि सकैत छी जे ओहि इतिहास सँ कनेक काल लेल हुनका मे नव स्फुरणा तँ जगैत अछि, मुदा ओकरा पुनः धारण करय लेल ओ तैयार नहि छथि। एकरा इतिहास नकारब कहि सकैत छी, जेकरा खतरनाक मानल जा सकैछ। एकरा कम करनाय आवश्यक अछि। एहि तरहें समस्या केँ नकारबाक प्रवृत्ति आ इतिहासक महत्वपूर्ण रीति केँ बिसरबाक प्रयत्न नीक नहि।