उपनयन-जनेऊ केर महत्व आ मिथिलाक अनुपम संस्कार पद्धति
जनेऊ केर महत्व

जनेऊ संस्कार केर अर्थ मोट मे आश्रम परिवर्तन होइत छैक। बाल्यकाल सँ ब्रह्मचर्य आश्रम मे प्रवेशक आ वेदारम्भ करबाक विशिष्ट आध्यात्म एहि संस्कार जेकरा हम सब उपनयन सेहो कहैत छियैक ताहि मे निहित छैक। मात्र एतबे आध्यात्म केर परिपूर्त्ति वास्ते अनेकानेक कर्मकांडीय विधि-व्यवहार मिथिला मे प्रचलित अछि। उद्योग, बँसकट्टी, मड़बबन्ही, चरखकट्टी, यज्ञ हेतु विभिन्न सामग्री जुटायब, पुनः वैदिक यज्ञारम्भ लेल आचार्य आ ब्रह्मा आदिक संग बरुआ सहित मड़बा पर हवनादि करैत मंत्र ग्रहण करब, जनेऊ धारण करब आर पुनः भिक्षा आदिक मांग करैत सविध मुण्डन आ पवित्र जल सँ स्नान कय नव-वस्त्र आदि धारण कय चुमाउन करैत दुर्वाक्षत सँ जेठजनक आशीर्वाद लैत ब्रह्मचर्याश्रम मे प्रवेश करैत वेद पढबाक अधिकारी बनि ओहि दिशा मे बढब, यैह होइत छैक ‘उपनयन’ संस्कार, जेकर आरो कय गोट नाम सँ विभिन्न स्थान पर जनेऊ पहिराओल जाइत छैक।


यज्ञोपवीत धारण करबाक मन्त्र छैक –
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥

आइ लोक शहरी परिवेश मे सब काज करय लागल अछि। सुविधाक नाम पर अशुद्ध आचरण करब कतहु न कतहु नीक संकेत नहि मानल जा सकैछ। शुद्धता मे जे संस्कार आ सभ्यताक पृष्ठपोषण छैक ताहि सँ आगामी पीढी लेल सेहो कल्याणक मार्ग प्रशस्त करब। उपनयन मे किछु व्यवहार एहेन छैक जाहि मे कुल-देवताक सान्निध्यक बड पैघ महत्व छैक। मातृका पूजन, नन्दीमुख श्राद्ध, व गोटेक कर्मकाण्डीय व्यवहार जे उपनयन मे निर्दिष्ट अछि ताहि मे गाम-घर बेसी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करैत अछि। व्यवहार मे शुद्धता लेल उचित वातावरणक संग सब काज अनुभवी समाजक संग बड़ा आराम सँ पूरा भऽ जाइछ। ताहि हेतु विशेष रूप सँ मैथिल ब्राह्मण समुदाय केँ एहि महत्वपूर्ण यज्ञक आयोजन सदिखन गाम-घर मे आयोजित करबाक चाही। एहि मे संछेपीकरण सँ भविष्यक पीढी केँ आर बेसी विकृति अपनेबाक दिशा मे डेग नहि बढाबी, ई चेतना हो, ताहि लेल एहि लेख केँ एतय प्रकाशित कयल गेल अछि।
हरिः हरः!!