ई देश सबहक नहि – मैथिली कविता ‘अग्निमित्र’

ई देस सभक नहि, किछु खासक ई देस
– डा. मित्रेश्वर चौधरी ‘अग्निमित्र’
“मा, हम सभ सन्तान भारत मा केर,
देस हमर माता”
“हँ, रिमिल”
“हम सभ सहोदर, सभहक एक माय”
“हँ, रिमिल”
“सम्पूर्ण देस सभक’
नदी – पहाड़ – जंगल – खेत – खदान…..”
“हँ, रिमिल”
“हम नहि पतिआयब मा,
हमरा ई गप्प बुझना जाइछ
झूठ आ प्रपंच”
“अहाँ केँ केहन बुझाय अछि, बौआ?”
हमरा बुझना जाइछ जे
ई देस दरोगा जी क, ई देस बीडीओ क
ई देस नेता सभक, ठीकेदारक ई देस
किन्नहु, हमर सभक नहि, ई देस!”
सुनि, रिमिल के माय गुम्म
रिमिल कहने जाइत छलथिन्ह –
“हमर टीचर प्रतिदिन कहैत छथि
फूसि, मिथ्या, आधारहीन ई गप्प – भारत माता वला”
ई देस सभक नहि, किछु खासक ई देस
गुम्म आ निर्निमेष रहली
रिमिल क मा!
 
– अग्निमित्र – १४.०५.२०१५