संस्कृत जेकाँ कुदृष्टि मैथिली पर कियैक?

९ अप्रैल २०१९, मैथिली जिन्दाबाद!!

भाषा तोड़बाक हानि केना आ केकरा

विश्व मे कतेको रास समृद्ध भाषा आ साहित्य केँ विभिन्न कारण सँ तोड़िकय नव-नव भाषा बनेबाक किंवा स्वस्फूर्त विकसित हेबाक कथा-गाथा भेटैत अछि। संस्कृत आइ कतेको नव भाषाक जननीक रूप मे मानल जाइछ, ई सर्वविदिते अछि। विगत किछु दशक मे मैथिली भाषा पर सेहो एहि तरहक कुठाराघात आ षड्यन्त्र होइत देखल जाइछ। पहिने त षड्यन्त्रपूर्वक मैथिली केँ स्वतंत्र भाषा स्वीकार तक नहि कयल जाइत रहय, लेकिन विभिन्न भाषा वैज्ञानिक लोकनिक अथक प्रयासक बाद कतेको तथ्यपूर्ण आधार, ध्वनि विज्ञान, शब्दकोश, व्याकरण, बोलीक निरूपण, आदि सँ ई भाषा मानल गेल। फेर एहि भाषा मे कोलकाता विश्वविद्यालय सँ पढाई-लिखाई आरम्भ होइत बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, बिहार विश्वविद्यालय, मिथिला विश्वविद्यालय, भागलपुर विश्वविद्यालय, मधेपुरा विश्वविद्यालय, त्रिभुवन विश्वविद्यालय आदि मे पठन-पाठन आरम्भ होइत अछि। पाठ्यक्रमक विकास सेहो क्रमिक रूप मे होइत रहैत अछि। नेपाल मे सेहो बहुभाषिक शिक्षा प्रणाली अन्तर्गत मैथिली भाषा मे पाठ्यक्रम विकास करैत प्रारम्भिक शिक्षाक भाषा बनाओल गेल। तथापि, मैथिली भाषा केँ रोजगार सँ नहि जोड़ि सकबाक कारण एकर दिन बड बेसी सुदिन नहि भऽ सकल जेना हमरा अनुभव होइत अछि। भारतक संविधान केर आठम् अनुसूची मे एकरा स्थान भेटलाक बाद ई संघ लोक सेवा आयोग केर परीक्षा मे ऐच्छिक विषयक रूप मे मान्यता प्राप्त केलक। आर, एक बेर फेर मैथिलीक विकासक्रम रोजगारक भाषा बनि जेबाक कारण आगू बढब शुरू भेल भारत मे। लेकिन नेपाल केर राष्ट्रभाषा नेपाली उपरान्त दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषा मैथिली रहितो एहि ठामक एकल भाषाक नीतिक दबाव मे ई अत्यल्प विकसित भेल बुझाइत अछि। हालांकि व्यवहारिक तौर पर – प्रयोग मे मैथिली भारत सँ बेसी नेपाल मे लोकप्रिय अछि ईहो स्पष्ट अछि। कारण ई एक लोकभाषा थिकैक, लोकक भाषाक रूप मे एकर समृद्धि मिथिला संस्कृति जेकाँ अनुपम आ अमर छैक।

नेपाल मे हाल संक्रमण कालक दौर चलि रहलैक अछि। नव संविधान घोषित भेलाक बाद एखन धरि पूर्णरूपेण संविधान नियम आ कानून बनिकय लागू नहि कयल जा सकल छैक। परञ्च सत्ताक खेल आ हिस्सेदारीक होड़ मे बेहाल कतेको पक्ष अपना-अपना तरहें दावी राखि रहल अछि। एहेन परिस्थिति मे सत्ता आ हिस्सेदारीक लोभ मे फँसल कतेको लोक अपना तरहें भाषा-साहित्य आ शिक्षा-सभ्यता आ समाज केँ अपना तरहें परिभाषित करय पर उतारू अछि। एहि क्रम मे मैथिली भाषाभाषी मे राजनीतिक दाँव-पेंच लगाकय भाषिक विखंडनक प्रयास किछु बेसिये तेज भेल अछि नेपाल मे। भाषिक विखंडन मे कतेको तरहक भ्रम पसारल जा रहल अछि। जातीय आधार पर बोली मे फरक केँ फरक भाषा बनेबाक बात आइ सँ नहि बहुतो दिन सँ होइत रहल अछि।

भाषा तोड़बाक लाभ-हानि पर एक नजरि

भारत मे सेहो मैथिली केँ तोड़ि १०० वर्ष मे अंगिका, बज्जिका आदि केँ अलग भाषा होयबाक दाबी कयल गेल। शिक्षा पद्धति मे सेहो एहि भाषिका केँ अलग भाषा मानि अलग विभाग बनाकय भाषा पठन-पाठन केर स्थिति बनल। लेकिन ई प्रयोग व्यापक स्तर पर असफल भेल आ एहि तरहें मातृभाषा सँ दूर हिन्दी ओ अन्य भाषा दिश लोकक झुकाव बढल। हम त डूबलहुँ सनम, अहुँ केँ लय केँ डूबि जायब – यैह कहाबत चरितार्थ होइत देखल गेल एहि नव भाषा केँ स्थापित कयला सँ।

एक भाषा सँ अनेकों भाषाक उत्थान आ पुनः पतन केर कय गोट उदाहरण भेटैत अछि। भारतवर्ष मे एक संस्कृत सँ कतेको भाषाक जन्म भेल, परञ्च संस्कृत केर हाल जनसामान्यक भाषा सँ दूर केवल विज्ञ-विद्वान् आ प्राचीन साहित्यक अलंकृत भाषाक रूप मे बनिकय एखनहुँ जिबैत अछि। आब धीरे-धीरे संस्कृत केर व्यापकता एहि लेल बढब शुरू भेल अछि जे कंप्यूटर द्वारा संस्कृत भाषा मे देल गेल निर्देशन सँ काज आसान होइत छैक। कंप्यूटर भाषाक रूप मे संस्कृत सहज हेबाक कारण आ दोसर जे सनातन वैदिक शास्त्र ओ पुराण संग विशालय साहित्यिक भंडार समेटने ई समृद्ध संस्कृत भाषा आइ पाश्चात्य संस्कृतिक जनमानस मे सेहो ओतबे लोकप्रिय सिद्ध भऽ रहल अछि। एखन संस्कृत विद्वानक मांग बढि गेल अछि, जर्मनी, फ्रान्स, अमेरिका, कनाडा, आदि कय गोट विकसित देश सब मे सेहो संस्करत पढेबाक-सिखेबाक लेल शिक्षक केर मांग बढि गेल अछि। नासा द्वारा सेहो संस्कृत भाषा आ अन्तरिक्ष केर खोज बीच कतेको रास रहस्यमयी सम्बन्धक बात सोझाँ आयल अछि। लेकिन, अपन मूल भूमि भारतवर्ष मे संस्कृतक लोकप्रियता आ उपयोगिता अत्यधिक उदासीन य।

मैथिली सँ डाह आ ईर्ष्या कियैक?

दुर्भाग्यवश मिथिलाक धरती पर जाहि तरहक राजनीतिक परिस्थिति, सत्ता-समीकरण आ राज्य संचालनक नियम प्रचलित अछि ताहि मे जातीयता बड पैघ सवाल बनि गेल छैक। केकर कोन जाति, केकर कतेक संख्या, ओहि जातिक सत्ता मे केहेन सहभागिता भेटलैक, ई सब कतेको विन्दु पर जन-जन केर दिमाग व्यस्त रहैत छैक। यैह कारण सँ किछु उच्च जातिक लोक पर अन्य जातिक लोक केवल एहि लेल आरोप लगबैत छैक जे उच्च जाति-वर्ग द्वारा कहियो सामन्तवाद केँ पोषण देल गेलैक, पान्डित्य परम्परा समाज पर लादिकय अपना केँ आगू राखि अन्य केँ पाछू करबाक मानसिकता सँ राज्य संचालन कयल गेलैक, अपना केँ शुद्ध आ सुसंस्कृत आ अन्य केँ पिछड़ल, अशुद्धभाषी, अछूत, निकृष्ट आदि मानिकय विभेदपूर्ण व्यवहार चलायल गेलैक… एहेन कतेको बात लेल वर्तमान युग मे उच्च जाति जेकर संख्या बड कम छैक तेकरा सँ प्रतिशोधात्मक व्यवहार करबाक राजनीति खूब जोर पकड़ैत जा रहल छैक। आर, एहि चपेट मे बहुल्य जनमानस द्वारा भाषा-साहित्य प्रति सेहो कतेको प्रकारक सन्देहजनक अवस्था आ दुविधा देखल जाइत छैक। बहुत पैघ वर्ग जे आइयो शिक्षा आ संस्कारक मामिला मे अपना केँ विकसित नहि कय सकल अछि ओ अपन मातृभाषा मैथिली ऊपर स्वयं शंका करैत अछि। ओकर आत्मविश्वासक कमी ओकरा एखनहुँ मातृभाषाक महत्व आत्मसात करबाक बजाय उल्टा भाषाक विवाद मे फँसबाक लेल प्रेरित करैत छैक।

स्पष्टतः अपना केँ कमजोर बुझि भाषाक आधार पर एकटा पैघ वर्ग कित्ता काटय मे लागि जाइत अछि। तरह-तरह केर तर्क आ बहस शुरू होइत छैक जे हमर भाषा ई नहि, हमर ठेंठ बोली मैथिली सँ फराक कोनो आन भाषा थिक। एहि सँ वास्तविकता मे केकरो कतहु लाभ नहि भेटैत छैक, उल्टा नुकसान बेसी होइत छैक। कारण ओ कोनो भाषा मे उत्कृष्ट काज नहि कय सकैत अछि जा धरि ओकर पढबाक-लिखबाक अवस्था मे सुधार नहि आओत। एक संग रहनिहार लोक, आपस मे एक्के बोली बजनिहार लोक, एक्के समाज, एक्के रेबाज, धरि भाषा भिन्न छी – एहेन दावी लोक नहि करैछ बल्कि ओकरा मे ई भ्रमक स्थिति बनबैत छैक मात्र किछु निहित स्वार्थ सँ भरल लोक। ओ लोक जेकरा कित्ता काटय सँ कतहु अपन कुत्सित लक्ष्य सिद्ध होइत नजरि पड़ैत छैक – वैह समाज केँ कोनो न कोनो तरहें बँटबाक काज करैत अछि। आर एहि तरहें मैथिलीक हैसियत जे नेपाल मे दोसर सर्वाधिक बाजल जायवला भाषाक छैक तेकरा ओ अपनहि सँ अपने कमजोर कय केँ महानगरपालिका आ जिला विकास योजना आ कि प्रदेश आ केन्द्र कोनो स्तर पर अपना लेल किछु कार्यक्रम आ सरकारी कोष भेटबाक लक्ष्य सिद्धि मे लागि जाइत अछि। एहेन लोक अपन भाषा वा संस्कृतिक विकास करय नहि करय, ओ ईर्ष्यावश मैथिली केँ अहित करबाक, बदनाम करबाक आ बिल्कुल संस्कृत जेकाँ व्यवहार सँ दूर करबाक खेल-वेल करब शुरू कय दैछ।

हमर ठोकल बात

हम एहि पक्षक लोक छी जे जँ अहाँ केँ अपन भाषा मैथिली नहि हेबाक अनुमान या भान होइत अछि तऽ अहाँ स्वतन्त्र रूप सँ कोनो भाषाभाषी कहाउ, अहाँ वैह भाषा लेल काज करू, स्वयं अध्ययन करू, पढू-लिखू आ संचारमाध्यम मे सेहो अहाँ वैह भाषाक सम्मान-सत्कार केँ बढाउ। अहाँ सँ केकरो भले कोनो शिकायत कियैक हेतैक? हमरा त कहियो नहि होयत। हमर भाषा मैथिली अत्यन्त प्राचीन आ साहित्यसम्पन्न भाषा अछि तेकर हमरा आत्मगौरव होइछ, आत्मसम्मान लेल हमरा भाषा सँ पैघ अन्य कोनो सम्पत्ति नहि आ अपन लोक सँ जुड़बाक लेल सेहो एहि सँ नीक दोसर कोनो साधन तक नहि नजरि पड़ैछ। भाषाक पृष्ठपोषण सँ समाजक पोषण होयत, हम एहि बात पर दृढविश्वास करैत छी।

मैथिली जिन्दाबाद!!

हरिः हरः!!