चाहक दोकान कि मचान कि दलान – मैथिल समुदायक ई सब उद्देश्य लेल फेसबुकिया दलान

वार्ता-विमर्श

सोशल मीडिया पर मैथिलीभाषीक विद्वत् विमर्श – एक रोचक आ सारगर्भित मुद्दा पर प्रासंगिक चर्चा

मैथिलीभाषी जाहि माटि-पानि-संस्कृति मे बढैत-पलैत छथि ताहि मे विद्वता हुनका लोकनिक रग-रग सँ छलकबाक अति प्राचीन आ पौराणिक परम्परा सब सँ ज्ञात होइत अछि। आइ रोजी-रोटीक चक्कर मे ई समुदाय देश-परदेश-विदेश सब तैर पहुँचि गेल छथि। हिनका लोकनिक बैसार लेल ‘चाहक दोकान’, ‘घरक दलान’, चौपाड़ि आ कि मचान, गाछी कि मैदान, पोखरि कि श्मसान, मठ-मन्दिर कि आन-आन स्थान भले मिथिलाक भूगोल मे सुव्यवस्थित नहि अछि; लेकिन सोशल मीडिया एहि मिथिलत्वक संरक्षण मे हिनका सब भिन्न-भिन्न प्रवास स्थल पर रहनिहार वा मूल भूमि पर अपन जीवन निर्वहन कयनिहार – सब केँ पुनः जोड़ि रहल अछि। आर, मैथिल कतहु रहता त बौद्धिक विमर्श हर तरहें करबे करता। ई लोकनि जतेक स्वयं केँ गारि पढैत छथि, किंवा आत्मालोचना आ कमजोरी सब केँ आत्मसात करैत छथि, किंवा उत्सवधर्मी बनिकय उन्माद मे बहैत छथि, एतेक बात शायदे अन्य भाषा-भाषी वा पहिचानपूर्ण सभ्यता मे कतहु भेटय। आउ, सोशल मीडिया सँ एकटा एहने उच्च मूल्यक विमर्श केँ हम जहिनाक तहिना एतय एकटा केस स्टडीक तौर पर राखि रहल छी। आशा करैत छी जे एहि विमर्श मे अहाँ सेहो सहभागी बनब, कारण अहाँ मे सेहो वैचारिक प्रक्रिया आ अभिव्यक्तिक समस्त लुरि-बुद्धि मिथिलहि वला अछि। आउ आनन्द ली।

आनन्दजी झा लिखैत छथिः

#चाटुकारिताक_वीभत्सता_मानव_लक्षण

राज दरबारी बनबाक होड़ आओर उगैत सुरुज के नमन करबाक प्रथा सम्भवतः सृष्टिक आदहिकालसँ मानव दोष के रूप मे रहैत बसैत आबि रहल अछि ……लेकिन एकरो तs कोनो सीमा होइते ने हेतैक?

नैतिकता, पारिवारिक संस्कार, व्यक्तिगत आचरण, शिक्षा, आत्म गौरव, सोचक स्वच्छंदता सहित विभिन्न मानव मूल्य के तs सेहो कोनो ने कोनो स्थान….सुन्दर,सुगंधित , सभ्य, शिक्षित व अलंकृत समाजक निर्माण आओर उन्नत मानव विकासक लेल होइते हेतैक?

की छल, प्रपंच, चाटुकारिता, लोभ, झूठ, दलाली, खुशामद, स्वार्थ….के संग समाजिक कार्य संभव?

ऐहन तरहक कटु प्रश्नक जन्म स्वभाविक अछि ….फेसबुक पर देखू या महानगर व अन्यत्रक मैथिल समाजक तरफ देखी…सर्वत्र अपनेक समक्ष एहन अनेक तथाकथित समाजसेवी व राजनैतिक महत्वकांक्षी व्यक्ति भेट जेताह ….जिनक मुख्य व्यवसाय रहि गेल अछि चाटुकारिता, ठगी व दलाली आओर दरबारी । इ लक्षण खास कs झा जी, मिश्रा जी, पाठक जी, चौथरी जी, ठाकुर जी सभ मे एक महामारी के रूप बनल अछि । हम अगर मात्र दिल्ली मे देखी तs एहन तरहक “लोफरक” संख्या कम सं कम 500 अवश्य होयत …पढि लीख व अपन हुनर के सहारे एहि पंडित जी लोकनि के पेट तs भरैत नहि छैन लेकिन मोन मे बसल छैन लोभक व भूखक पहाड़….तs एहन दशा मे किछु ने किछु चाही ….त सब सं पहिले विभिन्न राजनीतिक दल के छोट सं लs कs पैघ नेता सभक चमचिगिरि, जं कतहु सं पता लागल जे कियो आर्थिक रूप सं सम्पन्न भs रहल अछि त ओकर आगु पाछु, ओकर दरबारी …चूंकि ई देशक राजधानी अछि तैं एतय अनेक तरहक आला अधिकारी सेहो आबैत छथि …जं ओहि मे कियैक मैथिल या बिहारी निकललाह तं हुनकर पमौजी निश्चित…हुनका सं जान पहचान…अगर कोनो मैथिल सांसद या शीर्ष नेतृत्व मे भेट गेलाह त हुनका दुवारि पर तांता लागल रहैत अछि… अहुना नेता आओर अधिकारी के चमचा नीचे लगैत छैन … अरे भाई लोग मित्रता बराबरी वला मे होईत छैक।

चमचै व मतलब सं खरखाही लूटब दोस्ती नहि ।

एकर सभ चाटुकारिता के पाछा एक मात्र उद्देश्य, दलाली आओर आर्थिक लाभ ….जे एक तरह के अपन स्वाभिमानक कटोरी मे भीख मांगब भेल ।

संगहि एहन तरहक चमचा सभ रंग विरंगक भाषा एवं साहित्य के नाम पर संस्था के अपन पॉकेट मे लय कs चलैत देखाईत परैत अछि । अच्छा ओना देखु तs वाणी मे एहन मिठास देखायत जे लागत जे एहन सज्जन, एहन परोपकारी व्यक्ति धरती पर दुर्लभ….बहुत लोग झांसा मे परि जाईत अछि ।

अरे दुष्ट व कपटी….! समाजसेवा का मतलब पैसेवाले व रुतबे वाले का तलवे चाटना आओर कुत्ते के तरह जहां तहां भागना नहीं है । दलाली , चमचई व फरेबी के कमाई सं अय्याशी व करब आओर शराफत के चोला पहीर कs कहबैका बनब सं लाख गुना बढियां अछि मेहनत सं कमेनाई व स्वाभिमान के संग झुग्गी मे रहनाई ।……एहन दुर्जन के सज्जन बूझब महज एक दृष्टिदोष थीक …एहन तरहक लोग पर भरोसा करब मूर्खता अछि….एहन लोक सबसं समाज, भाषा, साहित्य, क्षेत्र , राज्य व राष्ट्र के संवर्धन व विकास के अपेक्षा बेमानी थीक । ऐहन चाटुकार व मौकापरस्त लोग सम्पूर्ण समाज आओर राष्ट्र के निर्दयता सं प्रदूषित कय रहल अछि जे निश्चित रूप सं कालांतर मे जा कs अंग्रेजी गुलामी सं अधिक घातक साबित होयत! केवल उत्तम मूल्य सं उत्तम समाजक निर्माण होयत । आजुक अगर देशक दशा देखी तs एहने प्रपंची के बहुतायत हर क्षेत्र व हर स्तर पर देखायत ताहि कारणे देश व राष्ट्रीयता के मूल्य मे छिन्न भेल जा रहल अछि । ईतिहास गवाह अछि जे विद्यापति हो या महाराज दरिभंगा या अन्य अनेकानेक मैथिल पुत्र जे अलग अलग क्षेत्र मे अलग अलग कालखण्ड मे पुरूषार्थ स्थापित करैत मिथिलाक गौरव मे चारि चाँद लगावैत विभूति व रत्न बनलाह हुनक पूंजी रहल मात्र हुनक , परिश्रम, कौशलता, विद्वता आओर संस्कारी क्षमता ….

(विचार रखनिहार आनन्दजीक पोस्ट फेसबुक सँ साभार – आर एहि पर विमर्शी लोकनिक विचार-जबाब-सवाल केर सूची देखू। हम विशिष्ट पोस्ट मात्र राखि रहलहुँ अछि।)

रमेश चन्द्र झाः जय हो ! ई अनुभव टटका छी वा पुरने के आब निकालि रहल छी बखारी मे सं ? अक्षरशः सत्य कथ्य अछि अपनेक ! सुर-सुर मुर-मुर करय वला चाटुकार, प्रपंची आ लोभी सियार सब भलमनसाहत केर चद्दरि पर मिथिला-मैथिली के रंग चढ़ा चहुँ-दिशि दृष्टिगोचर होयत ! एकर सभक मकड़जाल सं बाँचब बड मोसकिल अछि ! मिथिला-मैथिली के नाम पर सब के नेता बनक छै आ येन-केन-प्रकारेण कैंचा कमेबाक छै ! किछु दिन पहिने फेसबुक पर किओ भलमानुस अपन उद्गार एहि तरहें व्यक्त कयने छलाह – “आब ते सार्वजनिक मंच पर सम्मानित होइत लाज होइए” ! हुनक ई उद्गार बहुत किछु कहि रहल अछि !

आनन्दजी झाः जी सर अनुभव बसिया नहि अछि अनवरत देखि रहल छी सभ केयो।

राजेश कुमार झाः बहुत सुन्दर लिखलौ ऐछ. हमरा जनैत एहन लोग फेसबुक टा तक रहि जेता जखन जनता के बीच एता तहन अपन औकात पता चलैन छैन ठीक छै ताबे दुकान चलबै दियोन। एहन लोग हमरा सबहक लेल कलंक छैथ।

आनन्दजी झाः बिल्कुल सही कहल ….गंध मचल अछि आओर इयैह कारण अछि जे मिथिला सं पंडित जी सभ राजनैतिक हासिया पर चलि गेल।

श्वेता झाः छटपिटा देलियै आई सेहो मैथली में।

अरुण कुमार मिश्रः स्वाभिमानी पं अयाची मिश्र क’ अहि मिथिला पर चंद चम्मचा सभकें चाटुकारिता क’ बीमारी लाइग गेल छैक आ अहि बीमारी सऽ मिथिला क’ संस्कार कें दुषित कऽ रहल अछि।

हेमन्त झाः सत्य कहलऊँ भाई , मुदा ईहो सत्य अछि जे आजुक समाज मे एहने लोकक मान सम्मान आ स्वागत होइत देखा रहल अछि ।

आनन्दजी झाः जी सहमत लेकिन की एहन व्यक्ति समाजक आदर्श बनि सकैत अछि? अपने हमरा सं बेसिये देखि रहल छियैक …।

हेमन्त झाः कथमपि नहि।

प्रवीण नारायण चौधरीः (हम) – निश्चित कोनो न कोनो बात सँ अहाँक बहुत नजदिकी कोनो मित्र मैथिली-मिथिलाक अभियानक नाम पर काज करनिहार अहाँक आन्तरिक समर्पणक भावना केँ अपन चाटुकारितापूर्ण क्रियाकलाप सँ आहत कयलनि बुझाइत अछि। प्रतिक्रिया सेहो बड़ा प्रखर स्वर मे निकलल अछि।

आजुक संसार मे अपन भाषा-भेष-समाज लेल काज कयनिहार निःस्वार्थ कम्मे भेटत। हँ, चूँकि ई विषय आम जनमानस केर भितुरका मर्म केँ जल्दी सँ छूबैत छैक आर पिछला सौ वर्ष सँ ‘मैथिली’ लेल यैह तरीका सब सँ सुरक्षित आ प्रभावी रहलैक अछि। तैँ अहाँ-हम जाहि परिवेश मे रहि रहल छी तेकर चारू कात कतेको लोक एहि विषयक स्वांग रचिकय अपन गन्तव्य धरि गमन करबाक एकटा सीढी जेकाँ एकर प्रयोग करय लगला अछि। चिन्ताक बात नहि छैक। छद्म आ स्वांग रचनिहारक असलियत सब केँ कोनो न कोनो समय पर पता चलि जाइत छैक। अहाँ आश्वस्त रहू जे अहाँक भाषा आ संस्कृति बहुत मजबूत अछि। स्वयं जनक-जानकी सँ गाइडेड अछि। जे एकरा अपन स्वार्थक लेल प्रयोग कयलनि, हुनकर जीवन शापित रहलनि। अहाँ लम्बा इतिहास उलैट कय देखि सकैत छी।

राजेश कुमार झाः जय जय श्री राधे।

आनन्दजी झाः जी सर सभ किछु सामने अछि ….ईहो बात सही थीक भाई जे मिथिलाक पहचान आ गौरव जाहि क्षमता सं अपन सभक पूर्वज अर्जित कयलाह ओ धरोहर अपने सनहक समर्पित, आओर कर्मठ विद्वान व एक्टिविस्ट के संग निश्चित रूपेन आभूषित होइत रहत ….लेकिन किछु परिपाटी एहन दृष्टिगोचर अछि जे दुर्भाग्यवश वातावरण के प्रदूषित कय रहल अछि ….एहन डपोरशंखक प्रकोप सं समाज के बचेनाई सेहो अपने लोकनि एहन प्रबुद्ध के कर्तव्य बनैत अछि।

प्रवीण नारायण चौधरीः अहाँ केँ जनतब दी जे हम सब निरन्तर प्रयास करैत रहल छी जे हर व्यक्ति, व्यक्तित्व, संस्था, ओकर काज आदि पर निरपेक्ष भाव सँ समीक्षा लिखल जाइत रहय। नीक केँ नीक आ बेजा केँ बेजा, गलत केँ गलत कहबाक सामर्थ्य हमरा सभक मीडिया मे रहय। एहि दिशा मे सामर्थ्य कम रहितो लोक नीक काज कय रहला अछि। हमहुँ समय-समय पर सचेतनाक प्रसार करैत रहैत छी। लेकिन, यदा-कदा हमर बात सँ किछु लोक आहत सेहो भऽ जाइत छथि। एहि तरहें जेहो काज होइत अछि सेहो रुकि जाइत अछि। तेँ कनेक सावधानी रखैत हर काज केनिहार केँ पैटिंग करैत अपन निरपेक्ष विश्लेषण समाजक हित लेल रखैत छी भाइ।

अहाँक दिल्ली मे मैथिली-मिथिला सत्ता सँ जुड़ि चुकल अछि। ओतय ई अफीम जेकाँ नशा बनत। सत्ताक मद बहुत खतरनाक लेवल केर होइत छैक। अतः अहाँ सब बुद्धिजीवी लोकनि सदिखन निरपेक्ष भाव सँ आगू बढैत रहू। साहित्य केँ पुष्ट राखू। सभ्यता स्वयं संरक्षित रहत।

आनन्दजी झाः जो भाई दिल्लीक परिपेक्ष्य मे अपनेक आकलन सौ फिसद सटीक ….संगहि अपनेक प्रण के आत्मसात करैत हम कहब भाई जे सत्य लिखय सं परहेज नहि कयल जेवाक चाही …मां मिथिलाक आशीर्वाद रहत त कोनो बातक चिन्ता नहि …।

प्रवीण नारायण चौधरीः

प्रिय आनन्दजी, कतहु-कतहु चलाकी सऽ सेहो काज लेबय पड़ैत अछि। ‘विद्यापति स्मृति’ केर उपयोगिता जन-गण-मन केँ जोड़य लेल त अछिये, दिल्ली मे राजनीतिक रुतबा बनेबा मे सेहो प्रयोग होबय लगलाह अछि विद्यापति। ई सेफ मेथड थिकैक। नेतागिरी करैत छी आ भीड़ लगाकय अपन पक्ष केँ प्रदर्शन करबाक अछि, ताहि लेल विद्यापति समान मैथिली भाषाक महाकविक स्मृति कय आमजन केँ मैथिलीक मधु मे लोभाकय अपन काज सिद्ध करैत छी। जनता सब बुझैत अछि, दिल्ली वला नेताजी केँ लेकिन कनेकाल लेल भ्रम होइत छन्हि। लेकिन हम-अहाँ आनन्दित होउ। आखिर हमरे-अहाँक सखा-सन्तान एहि सब मे लागिकय कोहुना अपन आ अपन लोक केँ मजबूत करबाक सपना बेचैत छथि। देखैत चलू! २०२१ सँ ई अवस्था बदैल जायत।
आनन्दजी झाः सर ओह …हमर आशय कतिपय इ नहि अछि बल्कि हम एकर पक्षधर छी …अनेको निष्ठावान व्यक्ति एहि मार्ग पर नीक कार्य कs रहल छथि …हुनक राजनीतिक अभिलाषाक संग संग अगर अपन भाषा, साहित्य व संस्कृति के संरक्षण आओर संवर्धन भs रहल हो तs एहि सं सुन्दर की बात भs सकैत अछि ….हमर आपत्ति त ओहि वैचारिक विपन्न व शैदधांतिक दरिद्र व्यक्ति सं अछि जकरा कोनो नैतिक चरित्र नहि छैक …जेकर अपन नीजी जीवनक चरित्रक आधार महज दलाली, दरबारी, चापलूसी और दोगलापन हो….जे मधुर बोलक तलवार सं सज्जन शरीफ व्यक्ति के विश्वासक गला रेतय ….कोनो भी धनवान या अन्य लोग मे केवल अपन स्वार्थपूर्तिक साधन ताकय ….आओर ओहने लोक अगर मिथिला-मैथिलीक अपना आप के सिपाही प्रदर्शित करय तs की सर एहन मतलबी व्यक्ति समाज के मजबूत करत? सर एहन पाखण्डी सब के केवल अपन नाम आओर स्वार्थ सिद्धी चाही…..।
प्रवीण नारायण चौधरीः सहमत।

नवीन मिश्रः बिल्कुल सत्य चित्रण. जरूरत अछि जे एहेन लोकक सामाजिक बहिष्कार हेबाक चाही।

कैलाश कुमार मिश्रः जखन समाज हिनका लोकनि केँ मान्यता दैत छनि तखन हम अहाँ की क’ सकैत छी? विद्यापति बहुत पथेटिक बनि गेल छथि!😢

कल्पना करु जे विज्ञान किछु एहेन कमाल क’ लैत अछि जाहि सँ विद्यापति जिब जाथि आ ओ सोझे दिल्ली अथवा कोनो आन ठामक विद्यापति समारोह मे मोटका चद्दरि ओढ़ने चल जाथि त’ की हएत? जखन ओ देखता जे जय जय भैरवि आ एक आध आरो गीतक बाद लोक फूहड़ गीतक झड़ी लगबैत छथि। विद्वान कात भेल या त’ नहि अबैत छथि अथवा उपेक्षित भेल रहैत छथि। नेता सब अतिथि, मुख्य अतिथि बनल अंट शंट भाषण दैत रहैत छथि।

एक संस्था मे हम गेल रही। ओतय नेता सबहक माला आ पाग मे पूरा समयक 80 प्रतिशत हिस्सा जियान भेलैक। जखन विद्वान वक्ताक समय एलनि त हुनका कहल गेलनि जे जल्दी जल्दी खत्म करु। साहित्य आ संस्कृति हेतु संस्था बनल अछि मुदा साहित्यक लोक एकोटा नहि।
एकल वक्ता के भाषण मे वक्ता छोड़ि सब कियोक भरि इछे बजैत छथि।

विद्यापति मिथिलाक अनुपम धरोहर छथि मुदा जाहि तरहेँ हुनका हम सब बिसरि चुकल।छी आ उपहासक पात्र बनेने छी से अत्यन्त दुखक बात अछि।

विद्यापतिक वैविध्य सँ बहुत थोड़ छथि रवींद्रनाथ टैगोर मुदा हुनका बंगाली सब अपन माटि, साहित्य, संस्कृतिक पाग बना रखने अछि। विद्यापति के नाम पर एकटा ढंगक भवन दिल्ली मे नहिं बनल अछि। संस्था सबहक मुखिया सब लग बाजू त अनेड़े सिंहनाद केनाइ शुरू करताह। किछु विशेष विधा केँ लोक सांस्कृतिक गुटबाजी, जोर तोड़ मे अधिक आ रचनात्मक कार्य मे कम साकांक्ष भेल रहता।
बहुत बात अछि।

विद्यापतिक डीह पर किछु नहि अछि। पचास वर्ष मे हुनका पर कोनो प्रामाणिक आ गहन शोध नहिं भेल अछि।

मैथिली आंदोलन, सांस्कृतिक क्रियाकलाप, मिथिला राज्य आन्दोलन किछु लोकक पार्टटाइम टाइप धन्धा बनि गेल अछि।

की करबैक, देखैत रहू।

प्रवीण नारायण चौधरीः मर्मस्पर्शी सन्देश भाइजी। लेकिन विकल्प समाधान लेल की?

आनन्दजी झाः कैलाश भाइजी! भाई जी अपनेक बात मे हम अपन दर्दक गुंजन देखि रहल छी …अपने सब सन अग्रज यैह समझेने आओर सीखेने छी जे कोनो कार्यक सफलता …ओहि सं जुरल व्यक्तिक आस्था, निष्ठा आओर आचरण पर निर्भर अछि ….जखन कोनो आंदोलनक उदेश्य स्पष्ट नहि हों …तs अनेरे ढोल पीटनाई व भीड़ बनेनाई सं की फायदा ….फेसबुक के माध्यम सं देखि रहल छी एहि क्षेत्र बहुत उत्तम सं उत्तम कार्य भs रहल अछि …..लेकिन जखन हमरा लोकनि तुलनात्मक रूप मे देखैत छी यथा अपने टैगोर आओर विद्यापति व अन्य भाषा के …त एतय निश्चित रूप सं निराशाक अनुभव होईछ ….एकर जड़ि मे जे कारण अछि तकर चर्चा हमरा लोकनि कैये रहल छी।

(डा. कैलाश कुमार मिश्र केर एहि मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया पर हमरा द्वारा एकटा आधा घंटाक फेसबुक लाईव कार्यक्रम राखल गेल छल – स्थिति केँ आरो बेसी स्पष्ट करैत किछु सन्देश स्वयंसेवा करबाक प्रेरणा देबाक लेल।)

आनन्दजी झाः प्रवीण भाई अपनेक विडियो देखल …अपने बहुत बात के बहुत नीक ढंग सं एक संग समेटवाक प्रयत्न कयल ….नीक लागल ।अपनेक सकारात्मक सोच सेहो आकर्षित केलक….बहुत बहुत साधुवाद ….. परंच हम जे आयाम के चिन्हित करs चाहैत छलहुं ओकर आशय किछु अलग छल….हम निवेदन करय चाहब जे ऐहि आधुनिक दलान पर हर तरहक पहलू पर चर्चा हेबाक चाही ताकि ओहन तरहक व्यक्ति मे बदलाव आबि सकय संगहि समाज सेहो सतर्क भ सकय ….ओना सभ अपन अपन विचारक लेल स्वतंत्र अछि।

प्रवीण नारायण चौधरीः आनन्द भाइ! हँ, जेँ चर्चा केलहुँ तेँ हमहुँ सब विचार राखि पेलहुँ। चर्चा त हेबाके चाही। हम ई कतहु नहि कहल अछि जे अहाँ ई व्यर्थे कयल, बल्कि ई महत्वपूर्ण कार्य कयल आर सभक विचार एहि दिशा मे एबाक चाही। ताहि लेल हम फेसबुक लाईव सेहो कयल।

संतोष कुमार झाः (आनन्दजी सँ) आहा त मिथिलांचल के नटवरलाल सब के मुंह मखान के पात से पोइछ देखिए ।
विद्यापति के नाम आ पागक सम्मान के बेचनिहार के रूप मे इ छुटभैइया सब के नाम कारी अक्षर स लिखायल जायत भविष्य मे ।

इ चवन्नीया नवतुरिया स्वघोषित नेता सब भइर छिटटा मखान आ बोरा मे ललका पाग संगे ल क घूमेत रहैत छैथ । जखने हरही सुरही कयो काजक व्यक्ति भेटला नइ की —— ?

कैमरामैन चौबीसो घंटा संगे रहै छैन ।

अपर्णा झाः (अपन प्रतिक्रिया मूल पोस्ट पर दैत) एहेन तरहक पोस्ट पर बहुत सार्थक टिप्पणी तs कयल जा सकैत अछि मुदा फेर लागैत अछि जे “बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी….”

यथार्थ तs यहा अछि जे अपना सब किताबक दुनिया(intellectualism) में रही धरातल पर आबि नहि पाबि रहल छी/आबs नहि चाहैत छी.तैं कथनी-करनी में अंतर आबि गेल अछि.व्यवहारिक धरातल पर पछुआ गेल छी.जे कियो अहि सच्चाई के जानैत छैथ ओ अहि सबसे किनाराकशी कs अप्पन परिवार निर्माण में लागल छैथ और एहेन सब के अप्पन माटि के contribute करबाक सबसे नीक माध्यम यहा बुझाइत अछि.आ हम अहाँ एहेन परिवार या लोक के अप्पन भाषण में मिसाल के रूप में बाजि अप्पन स्पीच में पॉलिशिंग करैत छी.निजी जीवन त्s बस अप्पन सोच पर चलैत अछि. जाबे तक द्वंद रहतै ते कखनो ने कखनो दबलो रूप में चीत्कार कतहु ना कत्तहु से निकलबे करतै.

आय हम-अहाँ अप्पन गोटी सेट करबा में लागल छी आ जखन आहत होइत छी तखने मात्र एहेन स्वर सुनाई दैत अछि.

माफी के संग,यदि कड़वाहट आबि गेल होय… किया तs अपना सब जहरो उगलै छीयै तs बहुत मधुरता के संग. “लाठियों टूटी जाय आ सांपों नहि मरै”.

आनन्दजी झाः अपर्णा झा शुभ प्रभात के संग कहय चाहब …अपने विदुषी छी संगहि समाजक आदर्श स्वरूपा नारी शक्ति छी …अपने अपन बात बेहिचक राखि सकैत छी ..संगहि हमर ‘पोस्ट” मे कोनो बात अमर्यादित या अशोभनीय लागल हो तsओकरो रेखांकित अवश्य कय कृतार्थ करी … लेकिन बहुत विनम्रताक संग अपनेक भाषाक प्रकाश मांगय चाहब जतय अपने कहल जे ….”गोटी सेट ….स्वर सुनाई दैत अछि ….” पुनः नमन।

अपर्णा झाः अपने जाहि विषय के उठेलहुँ, चाटुकारिता…. बस ओहि के संदर्भ में अछि हम्मर ई पाँति.हमरा भेल जे अपने बुझि सकबै.बुझने अवश्य होयब मुदा हमरा से स्पष्टता चाहैत होयब. धन्यवाद.

कालीकान्त पाठकः (मूल पोस्ट पर) – अपने जाहि विषय के उठेलहुँ, चाटुकारिता…. बस ओहि के संदर्भ में अछि हम्मर ई पाँति. हमरा भेल जे अपने बुझि सकबै. बुझने अवश्य होयब मुदा हमरा से स्पष्टता चाहैत होयब. धन्यवाद.

सबिता झा सोनीः (मूल पोस्ट पर) – बाबा विद्यापति..कवि कोकिल आ ताहू में सर्वश्रेष्ठ सृजनधर्मी..विशिष्ट रचनाकार छलाह..आई जं हमसभ माँ सीता सं जानल जाइत छी त ओतबा कवि विद्यापति..सं..मुदा एकटा प्रश्न हमरो नित्यप्रति झिकझोरैत अछि जे..कवि विद्यापति पर्व समारोह में कवि आ रचनाकार सभ के कोनों मान सम्मान स्थान नहिं..। बाबा विद्यापति के फोटो राखि बाबा के सद्यः अपमान..अत्यंत दुःखद। 😢

अरुण कुमार मिश्रः सबिता झा ‘सोनी’ बहिन, आजुक समयमें बेसी ठाम बाबा विद्यापति कें नाम पर भऽ रहल समारोहमें कवि आ साहित्यकार क’ निरंतर उपेक्षा कएल जा रहल अछि। कवि सम्मेलन आ साहित्यिक परिचर्चा क’ आयोजन नै होईत अछि। एक दु टा विद्यापति गीत भेला कें बाद शुरू भऽ जाईत अछि अपन संस्कृतिकें गर्त में मिलेवाक पुर्व नियोजित षड़यंत्र । अभद्र आ अशिष्ट गीत आ नृत्य देखेनिहार सभक मौन मौताविक कार्यक्रम देर राति धरि चलैत रहैत अछि जाहि पर आयोजक लोकैन कें नियंत्रण नै रहि जाईत छैन।

आयोजक सभमें राजनितिक पृष्ठभूमि वाला लोक कें सम्मानित करवाक होड़ रहैत अछि, जकर उद्देश्य अपन राजनीतिक पहुंच आ भविष्यमें निजी स्वार्थ लेल ओकरा भुनेवाक संग जनता क’ बीच स्वंयकें प्रतिस्थापित करवाक प्रयास मात्र छैक।

सबिता झा सोनीः (अरुणजी सँ) .बिलकुल सहमत छी..भाय..जहिया तक साहित्यिक उपेक्षा होइत रहत.. मैथिली के उत्थान किन्नहुं संभव नहिं ..।

हेमन्त झाः (पूर्व वक्ता हेमन्त झा सँ इतर हेमन्त झा द्वितीय द्वारा मूल पोस्ट पर) – हमहुँ 24साल सँ दिली में रहि रहल छी आओर बहुत एहन लाेक के एहि में संलिप्तता देखि आबि रहल छी | सब गाेटे अपन राजनीतिक फायदा के लेल काज करैत छथि | संस्था केवल नाम छनि हिनका लाेकनि कें | सभ गाेटे अपन गाेटी बैसाबय में लागल रहैत छथि| हिनका लाेकनि कें की कहल जाय| अपने सबहक भांडा फाेरि दैलियैन्ह| अपनेक धन्यवाद। 🙏🙏🙏🙏

हरि मोहन झाः (मूल पोस्ट पर) श्रीमान्, अपनेक एहि वक्तव्य सँ हम शत-प्रतिशत सहमत छी। एहि सँ आगू बढि के हम इ कहऽ चाहैत छी जे मिथिला ‌‌‌‌‌क्षेत्रक एहेन तथाकथित स्वनामधन्य नेता, विद्वान, शिक्षित आओर समाजसेवक लोकनि नीचता, चाटुकारिता आ क्षुद्रता के पराकाष्ठा पर पहुँच चुकल छथि। जाहि #मिथिला_कै_विद्वान सभ #जगत_वंदनीय होइत छलाह, संपूर्ण भारत, जाहि मिथिलाक विद्वानक लोहा मानैत छल, जतय #याज्ञवलक्य_कालिदास_विद्यापति_चाणक्य_अयाची_मिश्र_कविवर_चन्दा_झा_शंकर_मिश्र_लक्ष्मीधर आदि महामहोपाध्याय कै जन्म भेल छलनि, ओहि मिथिलाक एतेक निम्न स्तर पर चारित्रिक पतन भऽ जायत, एकर अनुमान शायद हुनको सब कै नहिं हेतनि।

२. वर्तमान स्थिति कै देखैत इ कहल जा सकैत अछि जे मिथिला आ माँ मैथिली अपन संतानक क्षुद्रता कै देखि, कतहु कुनो दोग में हवोधकार भऽ कऽ कनैत हेती। अपन संतानक क्षुद्रता देखि माता शायद सिहरि जाइत हेतीह। आबक तथाकथित विद्वान लोकनि अधिकतर चाटुकारिता में लागल रहैत छथि कारण हिनका लोकनि के कुनो-न-कुनो तरहें सरकार या सरकारी संस्था सँ विभिन्न तरहक पुरस्कार लेबाक रहैत छन्हि, सरकारी धन सँ अपन झोरा भरैक छन्हि आओर निजी स्वार्थ में व्यस्त छथि। दरबारी कवि/विद्वान बननाइ खराब नहिं मुदा लगातार चाटुकारिता में लागल रहनाइ अत्यधिक खराब। विद्वान होइतो ओ लोकनि #राष्ट्रकवि_रामधारी_सिंह ‘दिनकर’ कै अधोलिखित पंक्ति कैँ ध्यान में रखनाइ जरूरी नहिं बुझैत छथि:

#भुवन_की_जीत_मिटती_है_भुवन_में_उसे_क्या_खोजना_गिरकर_पतन_में
#शरण_केवल_उजागर_धर्म_होगा_सहारा_अंत_में_सत्कर्म_होगा
#नहीं_पुरुषार्थ_केवल_जीत_में_है
#विभा_का_सार_शील_पुनीत_में_है॥”

४. तथाकथित समाजसेवी, नेता कै वास्ते किछु कहनाइ व्यर्थ अछि। इ सब एहने समाजसेवी छथि जे समाजक उत्थान होइ वा नहिं मुदा हिनकर सबहक उत्थान जरूर भऽ जाइत छन्हि, दिन दुना राति चौगुना के रफ्तार सँ।

५. एहने-एहने स्वनामधन्य विद्वान, नेता, समाजसेवी आदिक कारणे मिथिला अपन लिपि तिरहुता/ मिथिलाक्षर कैँ नहिं बचा सकल। जे अपन मातृलिपि कै नहिं बचा सकय ओ समाजक की विकास करतथि?? एखन मिथिलाक्षर लिपि कै बढाबा/प्रश्रय दैक बहुत हुमेला मचल अछि। कहैक लेल तऽ इ सब कहैत छथिन्ह जे मिथिलाक्षर लिपि कै प्रचार-प्रसार हेबाक चाही मुदा ओहिक आड़ में अपन नाम कमाबैक लेल, यत्र-तत्र मंच पर पाग-दोपटा पहिरैक लेल, यदि संभव होइ त बैंक-बैलेंस आदि कै दुरुस्त करै में लागल रहैत छथि। जे कियो विद्वान, एहेन स्वनामधन्य नेता या विद्वान कै बिना आगू-पाछू केने मिथिलाक्षर लिपि पर कुनो काज करैत छथि हुनकर कोनो तरहक मदद करब तऽ दूर उलटे हुनकर खिधांस करै में लागल रहैत छथि। हुनकर द्वारा कयल गेल काज कै मान्यता देबाक लेल तैयार नहिं रहैत छन्हि। डऽर होइत छन्हि जे यदि ओ सफल भऽ गेलाह तऽ हुनका के पुछत। एकर प्रत्यक्ष उदाहरण #आदरणीय_गुरुदेव_श्री_विनय_झा छथि। लगभग १४-१५ साल पहिने, हिनकर बनाओल मिथिलाक्षर फॉण्ट सब कियौ मिल के दाबि देलनि। फलत: एखन तक, जे भी टेक्नीकल कारण होइ, मिथिलाक्षर फॉण्ट पूर्णत: सफल भऽ कऽ मोबाइल/कम्प्युटर में नहिं आयल अछि। हमरा एतय #मैथिलीशरण_गुप्त जी कै लिखल दू टा पंक्ति यादि आबि रहल अछि:

#जिसको_न_निज_देश_तथा_निज_भाषा_का_अभिमान_है ।
#वो_नर_नही_निरा_पशु_है_और_मृतक_समान_हैं ।

६. एतेक भेलाक बादो हमरा आशाक किरण नजरि आबि रहल अछि। आम मैथिल के धीरे-धीरे अपन भाषा आ लिपि के प्रति लगाव जागि रहल अछि। एकरा शुभ संकेत मानल जेबाक चाही। जरुरत अछि, एहि चिनगारी के भड़केबाक। ओहि के बाद लोक अपने अपन भाषा आ लिपि कै नहिं छोड़त।

आनन्दजी झाः (हरिमोहन जी सँ) – बहुत बहुत आभार सर …अपनेक सत्य, सटीक और जादुई भाषा मे सब बात छुपल अछि जकर चर्चा हमरा लोकनि करैत आबि रहल छी …बहुत नीक लागल ।

हरि मोहन झाः धन्यवाद सर।

प्रवीण नारायण चौधरीः (हरिमोहन जी सँ) – १-५ धरिक अवस्था यथार्थता थिक। विवेचना कतेक सुन्दर कयल अपने! आभार।

६ मे अपने आशान्वित भेलहुँ अछि। ‘आम मैथिल के धीरे-धीरे…. जागि रहल अछि।’ ई वाक्य सेहो अपने आत्मसात कयल अछि। एकर कारण सेहो सुजान रूप मे जनैत होयब जे १-५ धरि वर्णित नकारात्मक शक्ति द्वारा येनकेनप्रकारेण मैथिली लेल काज करबाक रवैया सेहो एक थिकैक। संगहि, अदृश्य धार कय गोट आइयो निर्मल जल संग मिथिला परिसर मे बहि रहल छैक। राज्यविहीनता मे एतय कोनो एहेन संयंत्र नहि जे अहाँ-हमरा सब बात केर सूचना कोनो न कोनो स्रोत मार्फत भेटैत रहत। तैँ, उदासीनता केँ छोड़ि सब कियो अपन व्यक्तिगत योग्यता सँ जतेक संभव हो से स्वयंसेवा-स्वसंरक्षण केर पुरुखाक सिखायल मार्ग पर अग्रसर रहि मिथिला केँ पुनर्व्यवस्थापित करी। अस्तु!

रमेश चन्द्र झाः (हरिमोहनजीक पोस्ट पर)  बिल्कुल । सभ किओ नि:सर्वार्थ भाव सँ अपन हिस्साक योगदान दैत रही, ओएह पर्याप्त ।

हरि मोहन झाः श्रीमान प्रवीण नारायण चौधरी जी, अपनेक आभार जे अपने हमरा प्रोत्साहित कयलहुँ। हम एक मामूली छोट छिन साहित्यानुरागी व्यक्ति छी। #राष्ट्रकवि‌_दिनकर_जी के हम प्रशंसक छी। हुनकर लिखल किछु रचना हम बराबर पढ़ैत रहैत छी। #कुरुक्षेत्र में मानव समाज पर मार्मिक चोट करैत, #आशालता_के_पुष्प सेहो देखेने छथिन, से हम कोना बिसरि सकैत छी। देखू:


धर्मराज, गन्तव्य देश है दूर, न देर लगाओ,
इस पथ पर मानव-समाज को, कुछ आगे पहुँचाओ।
सच है, मनुज बड़ा पापी है, नर का वध करता है।
पर, भूलो मत, मानव के हित मानव ही मरता है।
लोभ, द्रोह, प्रतिशोध, वैर, नरता के विघ्न अमित हैं,
तप, बलिदान, त्याग के संबल भी न किन्तु, परिमित हैं।
मत सोचो दिन-रात पाप में, मनुज निरत होता है।
हाय, पाप के बाद वही तो पछताता, रोता है।
यह क्रन्दन, यह अश्रु मनुज की आशा बहुत बड़ी है,
बतलाता है यह, मनुष्यता अब तक नहीं मरी है।

आब अहीं कहू जे हम कोना नहिं आशान्वित रही???

प्रवीण नारायण चौधरीः प्रिय हरि मोहन जी, अहाँक लेखनीक स्पष्टता, शुद्धता आ प्रासंगिकता केँ संछेप मे कहबाक शैली एतेक प्रभावित करैत अछि जे हम किछु लिखय लेल बाध्य भेलहुँ। सामान्यतया अपना सब मैथिल – खास कय ब्राह्मण जाति-समुदायक लोक त ईहो बीमारीक शिकार छी जे वाणी मे स्पष्टता नहि राखब, जतय लिखबाक चाही ओतहियो लिखय सँ बचब, मोने-मोन दोसरक प्रतिभा सँ डाह करब… बहुत रास तकलीफदेह खराब बानि अछि हमरा सभक; आर समस्याक मूल जैड़ ओकरे हम मानैत छी… लेकिन आनन्दजी द्वारा एतेक सुन्दर पोस्ट आरम्भ कयल गेल जाहि पर हमरा लोकनि एतेक नीक जेकाँ संवाद कय रहल छी से सच मे आशा जगबैत अछि जे हमरा लोकनिक मिथिला ओहिना नहि युगों-युगों सँ जियैत आबि रहल अछि। अन्त मे, हमर एक गोट अनुरोध करब। कृपया मैथिली मे निरन्तर लिखय जाउ। सब कियो। विभिन्न विषय पर स्तम्भ लिखू। पठाउ। मैथिली जिन्दाबाद पर कन्टेन्ट्स केर अम्बार लगा दी। सब विधा पर लिखू। देश, विदेश, राजनीति, रोजगार, अर्थ, परदेश, संस्कृति… .जाहि पर मोन हो, लिखू। आ विस्तार सँ लिखू।

हरि मोहन झाः आभार श्रीमान।

(आर चर्चा एखनहुँ निरन्तरता मे बनल अछि)