राम सोगारथ यादव केर ५ गोट मैथिली काव्य रचना

विराटनगर, ५ जनवरी २०१९. मैथिली जिन्दाबाद!!

नेपाल मे मैथिली लेखन मे युवा तुर केर कवि सब काफी अग्रसर छथि। जखन कि विद्यालय स्तर मे पढाई वास्ते ई विषय केर विकल्प रहितो शिक्षकक अभाव मे पढबाक अवस्था ओतेक नीक नहि अछि, तथापि मातृभाषा प्रति निजी स्नेह केर कारण लेखनी मे ई लोकनि काफी आगू रहैत छथि। एहने एक युवा तुर केर कविक नाम अछि ‘राम सोगारथ यादव’। आउ, देखी अपन कविताक माध्यम सँ कि सन्देश सम्प्रेषित करय चाहैत छथि।

१. खगता

सोचै छी मन सँ काछिक’ हटा दिती तोरा
फेर सोचैत छी
कछला पर हमरे मन घबाह हेत
हँ हमरा बुझल अछि
मनक घाउ
बेर-बेर पिजुवाक’ बेर-बेर
टिस दैत रहै छै ।
तखन एकटा नियार बनबैत छी ।
हम अपना मनमे रखबौ तँ
मुदा शून्य स्थान पर ।
फेर सँ नियार के नियारि के देखैत छी
तखन लगैय’
आब तोरा बिनु एकडेग नइ बढि सकैत छी हम
हँ
जदि तोरा छडैपक’ जँ
धाप लगबैत छी तैओ
मात्र नउ धाप लगाबि सकैत छी
मुदा
हमरा जेबाक अछि
अनगिनती जीव के मन धैर
नपबाक अछि सभहक मनक गहिराई
आब अन्तिम बेर सोचैत छी
तोरा शुन्य स्थान पर रखला सँ
हम अपने शून्य सँ निचका स्थान पर गिर पडैत छी
तैं एक बेर आओर
अन्तिम नियार करै छी आ
हम अपना हृदयमे नेहक ताग सँ
खुटेस लैत छी तोरा
तब जा बुझ’मे अबैय हमरा
हमर खगता तों आ
तोहर खगता हम छी

२. युवा

पानिक पिठीपर
डिगडिगीया पिटक
जौर क लैत छह तों
माटिक गन्धके
माटिके झोरामे ध’क’ घुमैत
ओ श्री रामके
क’लैत छह अपना बसमे
प्रकृतिक कनकनसँ शब्द निकालनिहार/निकालनिहारि
भावक तागमे शब्द गँथनिहार/गँथनिहारि
ओ कवि आ कवित्रीकेँ
से सत्य ।
तोहर इ सभटा करनी देख
लहलहा उठैत अछि
गल’ लागल पुरैनक पात
फेरसँ पकुवा देब’ लगैत छै
कल्णायक चौबटियापरके पिपरक गाछ
हे उर्जावान युवा
तखन हमरा लागलैय
तों आब खोजि लेलह
चिरैताक पातमे मिठास
खोजि लेलह तों आब
सभहक हृदयमे बास
मुदा
तों, समुच्चा शक्ति जौर’क
उसका दैत छह माटिक विरुद्ध
माटि विभेद नइ करैत अछि कोनो बीजसँ
मुदा तों एकटा भिज भ’
विभेद क’ लैत छह माटिसँ
हे प्रचण्ड गर्मीक सहासी
पथक डोर युवा
संजोगिक’ राखू ई अपन एहि शक्तिकेँ
कहीँ कहियो माँगि नइ लइ
अहाँक मातृभूमि
अहाँक माटि
३. मुक्तक

 
माला लेल दु सुत डोरा खोजि रहल छी
संगे बैठबाक लेल बोरा खोजि रहल छी
ढनमना रहल अछि हमर वर्तमान आ भविष्य
तकरे बैठबाक लेल गोरा खोजि रहल छी
४. मुक्तक
पिलियै एतेक जे पीया गेलै जिनगी
नसा चढलै ऐहन जे जिया गेलै जिनगी
चिन्हा जानी कहाँ, ऐठन बैठन कत’
बिनु कागजे पतरके, दिया गेलै जिनगी
५. गजल

तोहर नइ मीत भ’ सकबौ
तोहर नइ प्रीत भ’ सकबौ

हम दोसर केँ शब्द रचना छी
तोहर नइ गीत भ’ सकबौ

हम चहुँदिस मिठास खोजै छी
तोरा लेल कोना, तित भ’ सकबौ

तोरे रचल खेलमे उलझल छी
हारि नइ तोहर जीत भ’ सकबौ

सोगरथा सहरजमिन भ’ गेल छौ
नइ टाट नइ तोहर भित भ’ सकबौ