बीमारी सँ छुटकारा लेल ई साधन सर्वाधिक लाभदायक होएछ

लेख

– प्रवीण नारायण चौधरी

बीमारी सँ मुक्ति केर अचुक मार्ग

प्रभुजीक विशेष कृपा अछि जे आइ भोरे-भोर तुलसीदासजी रचित रामचरितमानसक एक अत्यन्त गूढतम् मुदा देखय मे एकदम सहज ज्ञान सँ भरल ‘दोहा’ पढबाक लेल भेटलः
 

बिनु सत्संग न हरि कृपा तेहि बिनु मोह न भाग।

मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ अनुराग॥

ई हमरा फरिछाबय पड़त तेकर आवश्यकता ओना हम नहि देखैत छी, कारण मिथिलाक निरक्षरो लोक रामायण केर भाव केँ नीक सँ बुझैत अछि। हमर माय-काकी-बाबी सँ लैत भौजी-बहिन-दीदी सब केँ सेहो देखैत रही जे ओ सब आपस मे बैसिकय दुपहरिया मे रामचरितमानसक चौपाई समूह मे गबैथ आ ओकर अर्थ मनन करथि। एतबा कहाँ, आइ-काल्हिक स्त्रीवादी आ पुरुषवादी आ कोन-कोन वाद मे विशेषज्ञ लेखक-समीक्षक सब जेकाँ सीता आ राम केर चरित्र-गान करैत रामायण मे प्रयुक्त अनेकों अन्य सह-नायक-खलनायक सभक चरित्र केँ सेहो बड़ा रुचि सँ कहैथ सुनैथ। आइ ओ दृश्य हृदय मे स्मरण होएत अछि तऽ ओ स्वर्गीय काकी-बाबी सब कियो ओहिना आँखिक आगाँ झकझकाइत छथि। प्रणाम सब केँ, हुनको लोकनिक लोक अछि हमरा लेल। ओ सब आइयो ओतबे प्रभावकारी भूमिका खेला रहली अछि। हमर पिता, बाबा, आ समस्त पुरुखा-परिजन पितरलोक मे ओहिना परिवार बनाकय रहि रहला अछि जेना एतय छलाह। बस, एना मानू जे एतुका भूमिका समाप्त तऽ फेर दोसर जगत मे ओ सब अपन बेसी महत्वपूर्ण भूमिका प्रभुजीक लीलामयी रचना यानि ब्रह्माण्डक असंख्य पिन्डरूपी संसार मे कतहु निश्चित लोक मे निवास कय रहला अछि। हमरा रामक पद मे दृढ अनुराग अछि, कारण बच्चे सँ पिताक माला पर ‘सीताराम-सीताराम-सीताराम’ केर जप आ तेकर असीम प्रभाव हम देखैत-गुनैत आयल छी। आर, आजुक ई रामचरितमानसक दोहा पुनः हमरा ई बात मोन पाड़ि देलक जे सत्संग सेहो हरि कृपा सँ भेटैत छैक आर वैह सब बातक जैड़ थिकैक।

एहि बुझाइ केँ शिवजीक कहल निम्न मानसवचन सँ विराम देब, ई अनुरोध करैत जे एहि पर हमर पाठक लोकनि मनन करथि आ से बेर-बेर करथिः

हरि ब्यापक सर्वत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना॥

प्रभुजी सर्वत्र विराजि रहला अछि, प्रकट ओत्तहि हेता जतय प्रेम देखता। प्रेम केर ताल्लुक अछि ‘दृढ अनुराग’ सँ। दृढ अनुराग केर प्राप्ति केवल आ केवल मोह टूटला पर होइत छैक। जा धरि मोह मे फँसल रहल लोक, मोन, बुद्धि, इन्द्रिय आदि सब किछु भटकैत रहैछ। प्यासा मृग जेना मरुभूमि मे पानिक एहसास मात्र सँ दौड़िकय ओतय जाइत अछि, लेकिन ओ पानि थोड़े न रहैक जे पीबिकय अपन छुधा शान्त करत…. बेचारा फेर दृष्टि अपना शक्ति सँ दूर धरि दौड़बैत अछि आर फेरो दौड़ैत अछि दूर देखा रहल रिफ्लेक्सन सँ उत्पन्न मरुभूमिक बालु मे पानि दिस… फेर वैह हाल…. कहू केओ प्यासल जीव कतेक दौड़त? कारुण्य दृश्य बनैत छैक एतय। आशा करैत छी हे पढबाक संग-संग ओ दृश्य धरि अपने लोकनिक अन्तर्दृष्टि पहुँचि सकल होयत। बेचारा हरिण (मृग) एहिना प्यास अवस्था मे ओहि मरुस्थल मे दौड़ि-दौड़ि अन्त मे प्राण त्याग करैत अछि। प्यासे छटपटाकय पानि बिना अपन जीवन त्याग करय लेल बाध्य होइत अछि। ताहि सँ पूर्व ओ अनेक युक्ति, शक्ति, भुक्ति, मुक्ति, रिक्ति आदिक प्रयोग करैछ। ठीक तहिना ई ‘मोह’ मे फँसल जीव कदापि प्रभुजी संग दृढ अनुराग स्थापित नहि कय पेबाक बात आजुक स्वाध्याय मे उपरोक्त एकमात्र दोहा सँ अभरल आर दिन मानू आजुक अवश्य नीक बनि गेल से कहय मे हमरा कोनो हर्जा नहि। आर शिवजी स्वयं एहि पर अपन मोहर लगा देलनि। देवाधिदेव महादेव केर मुख सँ निकलल अछि रामकथा आर एहि रस मे कतेको कवि अपना-अपना तरहें डूबिकय कथा रचना हमरा सब लेल रखलनि अछि। आर निष्कर्ष त देखू – मोहनाश लेल उपाय सेहो कहलनि अछि – “सत्संग”। आर सत्संग लेल फेर “हरिकृपा”। बात घुमि गेलैक न? हाहाहा – जुनि घुमाउ प्लीज। बात सीधा छैक। हरिनाम स्मरण करैत रहू, कृपा भेटबे टा करत। आर बाकी फेर कतय जायत! अस्तु!
 
एखनहि एक मित्र ‘अमित कुमार झा’ दिल्लीक दिलवाली भूमि सँ वर्तमान युगक अनुसार स्वयं अस्पतालक आइसीयू बेड पर रहि इलाज करेबाक फोटो संग अपडेट लगौलनि दिल्लीवाली हिन्दी भाषा मे जे आपलोगों की दुआ है, माता रानी की कृपा है, मैं बच गया…. जाने लगा था, बस यूँ समझो कि सम्भल गया… आपकी स्नेह बनी रहे… अब मैं ठीक हूँ…. आदि। आइसीयू केर नाम सुनिते हमरो कान ठाढ भऽ गेल। कारण जाहि तरहक भोजन आ पेय पदार्थ आदि सेवन जबानी मे केलहुँ से हमरो एडवान्स मे देखा रहल अछि जे कहिया ओहि आइसीयू होएत सियावर रामचन्द्र की जय भऽ जायत…! हँ-हँ, अपने लोकनि कहबय जे आदति मे सुधार आनू। यौ जी! कहब बड़ आसान छैक मुदा करब ओतबे कठिन। ई जे खराब आदति होइत छैक से कम ताकतवर नहि। ओहिना नहि न देवता आ दानवक युद्ध केर वर्णन कयल गेल अछि एतेक रास रामायण-महाभारत सब मे। जहिना हरि कृपा मजगुत होइत छैक तहिना ई असुर कृपा सेहो हमरा सब केँ जकड़ने रहैत अछि। बच्चा मे त फेकलोहो ठुठ्ठी चुरोट (सिगरेट) पियय मे मजा अबैत छैक, बाद मे अपने किंग फिल्टर आ हुक्काक गुरगुरी या पाइप मे पर्यन्त सिगार आदि पिबैत अछि। ओतबा कहाँ, सिगरेटक यार एल्कोहलिक ड्रींक बियर, व्हीस्की, रम, जिन, वोदका, कौकटेल आदि पियैत अछि। पीबाक कमी थोड़े न छैक…! पीनाय त छोड़ू – ई खेनाय सेहो सार तेहने पापी बनि गेल अछि। हमरा त एखन मायक हाथक रामझुंगनीक झोर मोन पड़ि गेल यौ भाइ। माय जा धरि खुएलक ओह, ओ सबटा ई बीपी, सुगर, एसिडिटी, आदि सँ मुक्त बुझायल भाइ। सच कहैत छी, पत्नी सेहो बड़ा केयर करैत छथि। मुदा ई पापी मोन यानि ‘हम’ अपने सी-नम्बर बदमाश…. अपन शरीर सँ अपने शत्रुता करब त कहू न सियावर रामचन्द्रकी जय आइसीयू मे भऽ जायत त अहुँ सब कतेक नोर बहायब? खैर, अमितजी केँ पैरलाइसिस अटैक एलनि, समय पर भर्ती भेलाह, बाँचि गेलाह। पुछलियैन हिन्दिये मे जे अब तो आपलोग मैथिली भूल गये होंगे…. चट दिना कहला जे ‘एह कि बात करय छी, मैथिली आ हम बिसैर जायब…” – बुझि गेलियैक जे हिनको दिल्लीक दिलवाली भूमिक हावा लागल छन्हि तैँ जोश मे अधिकांश हिन्दी बाजबाक आ किदैन की औरी-सौरी सब जोड़िकय जे ओतुका जाट सब हिन्दी बाजैत अछि से अपन मैथिल कनिके दिन मे ओकरा सँ टैपकय मिथिलावला मसल्ला मारिकय बजैत छैक जाहि पर ओ पंजाबी, जाट, राजस्थानी ई सब हड़कल रहैत अछि। खैर ओ कहला जे हम मैथिली जनैत छी, तऽ वादा अनुरूप हुनका मैथिलीक ओ महामंत्र देलियैन जाहि सँ बीमारी सँ मुक्ति भेटैत छैक। ओ थिकैक भजन, आ सेहो मैथिली यानि संस्कृत देवभाषाक बेटी मे। ताहि पर सँ रचना थिकन्हि मैथिलीपुत्र प्रदीप केर, प्रसंगवश अपनहु लोकनि ग्रहण करी। कारण बीमार हम असगरे नहि छी, हिहिहि, अपनो लोकनि बेसी लोक हमरे यार थिकहुँ जेना अमितजी छलाह। गछबो केलनि। सुधार करता धीरे-धीरे आब। त लेल जाउ, ई मंत्ररूपी भजनः गाउ, मनन करू आ हरिकृपा लेल सदिखन अग्रसर रहूः
 
बाबा बैदक नाथ कहाबी
से सुनि शरण मे एलौं ना
से सुनि शरण मे एलौं ना
अहीं के चरण मे एलौं ना
बाबा बैदक नाथ कहाबी….
 
बहुते भरोसा ल’ के
एलौं शरण मे
तनी कन्डेरियो हेरब ना
नहि त माँ जगदम्बा के संगे
हमहुँ बसहा घेरब ना
बाबा बैदक नाथ कहाबी….
 
त्रिशूल बाघम्बरधारी
तजिकय महल अटारी
अहाँ वन मे एलौं ना
बाबा छोड़ल छप्पन भोग
अहाँ नित भाँग चिबेलहुँ ना
बाबा बैदक नाथ कहाबी….
 
दुतिया के सोभे चन्ना
सिर पर सुरसरि गंगा
से भक्तक कारण ना
बाबा कयलहुँ तान्डव नृत्य
डमरु सँ वेद उचारल ना
बाबा बैदक नाथ कहाबी….
 
अहीं के शरण तेजि
केकरा निहारी
पेलौं बहुत प्रताड़णा ना
बाबा दीन “प्रदीप”क वेदन
सुनियौ हमरो निवेदन ना
बाबा बैदक नाथ कहाबी…
 
नीक लागल हो तखनहि लाइक करब, कमेन्ट करब आ आगाँ आरो लोक संग शेयर कय लेब। कि पता, एहि सँ कतेको लोकक कल्याण भऽ जाएक! 🙂
 
हरिः हरः!!