ढेर जोगी मठ उजाड़ – कथा एक महानगर केर मैथिल लोकनिक (अवश्य पठनीय)

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

ढेर जोगी मठ उजाड़
 
ई कहावत अपन मिथिला मे कतेक जल्दी कतय-कतय चरितार्थ भेलैक अछि एकरा लेल हमरा कथा-शैली मे घुमाकय किछु लिखय पड़त से जरूरी नहि अछि, सीधा नामो लय केँ ५० टा उदाहरण गनबा सकैत छी। मुदा जरूरी ई छैक जे टुन्नी दाय रुसैथ नहि तैँ हिनका जे कहियौन से खिस्से-पिहानीक शैली मे। जी! कहबाक मतलब जे अपन मैथिल नागरिक केँ यदि मिथिलाक व्यथा-गाथा सीधा उदाहरण लैत कहबनि त ओ मुंह फुला लेता। खिस्से सही…. मुदा कहियौन। त आजुक खिस्सा अछि ‘ढेर जोगी मठ उजाड़’ केर।
 
एक महानगर मे लगभग ५०० घर मैथिल बसैत रहथि। मूलरूप सँ ओ महानगर मिथिलाक रहितो कालान्तर मे नव बसोबास शुरू भेलापर विभिन्न संस्कृतिक लोक सेहो एतय बसब शुरू कय देने छल। यथार्थ रूप सँ आजुक मिथिलाक कतेको महानगर मे मात्र मैथिले टा नहि, गैर-मैथिल नागरिक लोकनि सेहो विभिन्न राज्य सँ रोजी-रोजगार जमबैक हिसाबे आबिकय बसि गेल छथि। ओ सब बसले टा नहि छथि बल्कि मुख्य शहरी हिस्साक जमीन सेहो मैथिल नागरिक सँ कीनि-कीनिकय अपना नाम मे कय लेने छथि। प्रमुख चौक चौराहा पर नगहर भरयवाली मिथिलानी सब माथ पर नगहर केर गागर भरि साड़ी सँ झँपने गीत गबैत पंक्तिबद्ध रूप सँ चलैत देखेनाय कहियो नसीब नहि भऽ सकैत अछि मिथिला मे, बल्कि हृदय केर धड़कन केँ दहलाबयवला फूल साउन्ड मे डीजे आ ताहि पर हाथ-पैर छिरियाबैत माथ केँ चारूकात हिलाबैत पैर भूत लागल अवस्था मे पटकय जेकाँ पटकैत आँखि-ताँखि मुनिकय आ केसक लट लहराबैत छौंड़ा-छौंड़ी-मौगी-पुरुख सब एक्के ठाम नाच करयवला डीजे बाजा संग चलैत देखायत। ई सब थिकैक मिथिला मे पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र आदिक प्रभाव। दिल्ली मे रहनिहार मैथिल ओतय सँ डीजे कल्चर अपने अनलक अछि, एहि लेल अहाँ मिथिला मे रहनिहार मारवाड़ी-पंजाबी केँ दोष नहि दय सकैत छियैक। दोसर राज्यक लोक एतय एबो नहि कयल अछि, सिवाये पड़ोसी भोजपुराक किछु मसियौत-पीसियौत केर। त, जाहि महानगर केर कथा हम कहि रहल छी ताहि ठाम सेहो सब संस्कृतिक लोक एक संग आगू-पाछू जीवन बसौलनि।
 
आर, एक-दोसरा मे अपन-अपन संस्कृति, भाषा, वेशभूषा, परम्परा आदि केँ संरक्षण करबाक प्रतियोगिता तखन शुरू भेल जखन शासन पद्धति मे परिवर्तनक संकेत भेटब शुरू भेलैक आर सत्ता मे भागीदारी तखनहि भेटत जखन अपन शक्ति प्रदर्शन सँ शासक वर्गक लोक केँ चेतना धरि सन्देश पहुँचा देबैक जे भाइ हमहुँ सब एत्तहि छी आर हमरो अस्तित्व बापे-पुरुखाक युग सँ एतय अछि। सत्ताक भोग केकरा नहि चाही यौ जी! पद, पावर, पैसा…. यैह सब त एहि अर्थ युग मे लोकक मांग अछि। आर पद-पावर-पैसा लेल ओहदा चाही, अधिकार चाही, अहर्निश दिन-राति लगन सँ मेहनति चाही। खासकय एहेन जगह जाहि ठाम वर्तमान समयक अनुसार सब भाषा-भाषी, संस्कृति आदिक लोक रहैत हो त ओतय अहाँ मूलवासी रहितो जँ पाछू पड़ि जायब त उपरोक्त सब बात अहाँक हाथ सँ छीनल जायत। जेना, दिल्ली मे अहाँ अपन भाषा-संस्कृति आदि सँ चेतलहुँ त आइ अहाँक एकजुटता केहेन रंग आनि लेलक…. वैह जे अपन घरहि मे अहाँ भटैक गेलहुँ त परिणाम देखाएते होयत। हम पहिने कहि देने छी जे खुलिकय किछु कहब त फल्लाँ-चिल्लाँ रुसि रहता…. बस इशारे-इशारा मे खिस्सा सुनू। क्षमता हो त गुनू! नहि त हमर मेहनति ब्यर्थ जाय, कोनो दुःख नहि। त, ओहि शहर मे मैथिल जनमानस सब बैसार करैत एहि बातक चिन्ता व्यक्त कयलन्हि जे जेना परिस्थिति बदैल रहल अछि ताहि मे यदि हमहीं मैथिल सब पाछाँ पड़ि जायब त पावर, पद, पूँजी सब जायत तेलहंड मे। जागरुकता बढैत देरी निर्णय भेलैक जे महाकवि विद्यापतिक स्मृति समारोह कयल जाय आर अपन संस्कृतिक प्रदर्शन करैत स्थिति केँ सम्हारल जाय।
 
निर्णय होएत देरी समारोहक तैयारी शुरू भेल। बड़ा भव्य समारोह कयल गेल। चारूकात उत्साह आ प्रदर्शनक गर्मी सँ आर-आर लोक मे कोहराम मचि गेल। एक्के बेरुक प्रस्तुति सँ राज्य सहित प्रजा आ संचार माध्यम आदि मे ‘बाप बापे होएत छैक’ ई बातक संवाद संचरण भेल से दुनिया बाजय लागल। पुनः दोसर बेर उत्साहित मैथिल जनमानस वार्षिकोत्सवक रूप मे फेर अपन धमाकेदार प्रस्तुति सँ राज्य ओ प्रजा केँ अपन मौलिक उपस्थिति ओतबे सशक्त रहबाक संवाद देबाक निर्णय कयलन्हि। एवम् प्रकारेण दोसर बेर महानगर मे कुल १४ गोट तोड़ण द्वार आदि लगाकय राष्ट्र प्रमुख लोकनिक संग-संग अन्तर्राष्ट्रीय अतिथि, विद्वान्, कवि, कलाकार लोकनिक एहेन घनघोर जमघट कयल गेल जे पुनः मैथिलक सामर्थ्य, संस्कार, समृद्धि सँ सौंसे संसार केँ सार्थक संवादक संचरण सफलतापूर्वक होएत देखल गेलैक। एतेक दिन धरि मैथिल केँ कतहु पूछो नहि करयवला संस्कृतिक लोक मैथिल गणमान्यक बिना अपन कार्यक्रमक शोभा-प्रदर्शन केँ जीरो मानय लागल। मैथिल सर्जक लोकनिक सम्मान करब ओहो सब परम कर्तव्य बुझय लागल। ओकरा सब केँ ई ज्ञात भऽ गेलैक जे जा धरि हम सब एहि मैथिल केँ संग लय केँ नहि बढब, ता धरि हमरा लोकनि अपूर्ण रहब। एहेन सकारात्मक आ सशक्त पहिचान सिर्फ अपन सभ्यताक समुचित संरक्षण ओ संवर्धन सँ संभव भेलैक।
 
लेकिन, ई कि? अपनहि मे उपराउपरी शुरू?? जी हाँ! मैथिलक सब सँ पैघ दुर्गुण जे अपन समृद्धि केँ डनियाही दृष्टि सँ अपनहि देखब शुरू करैत अछि। उपरोक्त महानगर केर मैथिल लोकनि पूर्ववर्णित वर्चस्व मे आब निजी छवि केर वर्चस्वक रोग सँ ग्रसित भऽ अपना केँ मंचक अगुआ बनेबाक लेल बेताब भऽ गेलाह। समारोह लेल कार्यसमिति मे सत्रह गो सल्लाहकार बनि अपना केँ अगुआ देखेबाक लेल परेशान! स्थिति गड़बड़ होयब शुरू। किनको एक बात पसीन तँ दोसर केँ ओ नापसीन! अनेकों मत, मतान्तर आ मनान्तर सेहो स्पष्ट देखाय लागल। आर, तेसर प्रस्तुति केँ सम्पन्न करेबाक लेल सार्थक शक्ति, कहू न ब्रह्मास्त्र आदिक प्रयोग कय केँ नव सृजित शक्ति प्रदर्शन केँ बरकरार राखल जा सकल। घरक झगड़ा घरहि धरि राखि, कोहुना-कोहुना ईहो कार्यक्रम जानकी-राघवक कृपा सँ झमटगर भेलैक। समूचा संचार माध्यम एकर सकारात्मक पक्ष केर फेरो चर्चा केलक। संयोग नीक कहू जे आमलोक मे बनि रहल छवि तीन फूके चानी वला कहाबत केँ सेहो चरितार्थ कय देलक। परञ्च तेकर बाद….. आह! आपसी मनभेद, पाछू सँ एक-दोसरक निन्दा, टांग घिचबाक प्रवृत्ति आ छिटकी मारिकय अगुआ पछाड़बाक प्रवृ्त्ति आदि एतेक ताण्डव केलक जे आखिरकार हिम्मती अगुआ जे अपमानहु केँ घोंटिकय पिबैत काज कय लैत छल, ओहो हारि गेल। आर फेर जेना होएत अछि, महानगरक मैथिल अपन एकजुटता भंग कय आखिरकार पुनर्मुसिको भवः वला संस्कृतक प्रसिद्ध कहिनी केँ सिद्ध केलनि।
 
पाठक लोकनि! खिस्सा समाप्त भेल। लेकिन खिस्साक नियति ताउम्र चलैत रहत। यदि हम सब नेतृत्व मे विश्वास नहि करब, सिर्फ मंजिल पर पहुँचबाक लेल सरदारक सरदारी मे नहि चलब, सब कियो सरदारे बनय लागब, त जेना आइ मिथिलाक भूगोल केँ ‘मिथिला’ नाम सँ संवैधानिक मान्यता कतहु नहि देल गेल अछि ताहि मे हम सब कोनो टा सुधार नहि कय सकब। खिस्सा भने एकटा महानगर लक्षित कहल गेल, लेकिन स्थिति मोटामोटी सब तैर यैह अछि। नेतृत्व निर्माण आ संधानल डेग बढैत रहबाक लेल सभक प्रतिबद्धता जरूरी छैक। अस्तु!
 
हरिः हरः!!