मैथिली भाषा मे रोजगार उत्पन्न करबाक लेल संकल्प लीः अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर खास

अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर खासः भाषाकेँ रोजगार सँ जोड़बाक संकल्प ली
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हमर मातृभाषा मैथिली आ समस्त अन्य मातृभाषा सँ अनुराग रखनिहार जनगणमन केँ हमर प्रणाम! बन्धुगण, मनुष्यक मनुष्यता मे मातृभाषाक महत्व मायक कोरा सँ मृत्युवरणक समय आ अछिया पर जरि जेबाक काल धरि कठियारी पहुँचल लोक सँ मृतकक परिवार मे भऽ रहल मातम धरि कतेक उच्च छैक ई बात सांसारिक व्यवहार पर गूढ दृष्टि रखनिहार सब कियो जनैत छी। मातृभाषा केँ मौलिक श्रृंगार मानल जाएत छैक। मस्तिष्कक क्रमिक विकास सर्वथा मातृभाषा मे सर्वोच्च होयबाक कारणे विश्व भरिक शिक्षा प्रणाली मे मातृभाषाक माध्यम सँ कम सँ कम प्राथमिक शिक्षा आ बाद मे भाषा-साहित्यक ज्ञान सँ जन-जनकेँ जोड़िकय रखबाक लेल भाषा एवं साहित्यक रूप मे ऐच्छिक आ अनिवार्य यथासंभव विषयक रूप मे पठन-पाठन करेबाक सिद्धान्त प्रचलित अछि। हमरो लोकनिक मिथिला क्षेत्रक लोक लेल चाहे भारत या नेपाल, दुनू ठाम भाषा अध्ययन वास्ते उचित प्रबंध रहबाक बात भेटैत अछि।
 
लेकिन शिक्षाक अर्थ सिर्फ पेट पोसनाय बुझनिहार लेल कि भाषा आ कि साहित्य, सब किछु महत्वहीन सिवाये पेट कोना पोसब, परिवारक भरण-पोषण एकमात्र लक्ष्य तेकर संधान कोना करब… बस ततबे टा। रोजी-रोटी कमेनाय हमरा लोकनिक कर्तब्य मे अछि। लेकिन समग्र स्थिति-परिस्थिति पर बौद्धिक दृष्टि, आध्यात्मिक स्वरूप आ ऐतिहासिक अवदान सभक बीच सुन्दर समन्वय करबाक काज सेहो करब हमरा लोकनिक कर्तब्य आ धर्म दुनू थिक। मानव सभ्यता मे भाषा सँ साहित्य, साहित्य सँ संस्कार, संस्कार सँ संस्कृति आर संस्कृति सँ सभ्यता निर्माणक अकाट्य सत्य केँ कियो नहि नकारि सकल अछि। लेकिन अफसोस जे मिथिलाक पूर्ण सभ्यता वर्तमान समय बड पैघ संकट सँ जुझि रहल अछि। स्वयं मैथिलीभाषाभाषी अपनहि मातृभाषा सँ शत्रुवत् व्यवहार कय रहल देखाएत छथि। छात्र अपन विषय अनिवार्य त दूर वैकल्पिक-ऐच्छिक विषयक रूप मे पर्यन्त पेट-पोसा शिक्षा पद्धतिक कारण त्यागि रहल अछि। समाज मे खुलेआम राजनीति करैत नेतावर्ग मैथिली भाषा केँ उच्चवर्गक भाषा कहिकय संस्कृतहि जेकाँ एकरो लोपोन्मुख करबाक लेल उद्यत् छथि।
 
नाम लेल हमरा सभक मातृभाषा भारतीय संविधान आठम अनुसूची मे जाएत अछि, नेपालक संविधान सँ समगर्दा सब मातृभाषा केँ राष्ट्रीय भाषाक दर्जा देबाक कारण मैथिली सेहो ई सम्मानक भागी बनि जाएत अछि…. धरि उपलब्धि मे बहुत खास गणना योग्य उपलब्धि भेटल आ जनमानस मे ई विषय कोनो खास आकर्षण उत्पन्न केलक से नहि अभरैत अछि। तखन ई नहि काटल जा सकैत छैक जे भारतक संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षा मे मान्यता भेटला सँ मैथिली रजनी-सजनीक भाषा-स्तर सँ बहुत ऊपर पहुँचि गेल। ईहो अकाट्य सत्य जे गोटेक सामाजिक अभियन्ताक प्रयास सँ आइ मैथिलीक विभिन्न क्षेत्र मे नव क्रान्तिक प्रवेश होमय लागल अछि। आर ई नीक संकेत भेल। भाषाक सुदृढीकरण लेल विभिन्न विधा मे रोजगारक अवसर यदि सृजित भऽ सकल अछि तऽ निश्चित एकर भविष्य उज्ज्वल हेतैक।
 
भारतक साहित्य अकादमीक योगदान पिछला कतेको वर्ष सँ एकर सीमा केँ संकुचित केलक, प्रोत्साहन राशि (पुरस्कार) केर वितरण कोनो निश्चित वर्गक विद्वान् धरि सीमित रखलक आर आरो वर्ग केँ समेटबाक लेल वैकल्पिक सम्मान अन्य वर्ग केँ आरक्षणक तर्जपर प्रदान नहि कय सकल – तेकर दोषक कारण सेहो किछु राजनीतिकर्मी केँ मैथिली केँ एकटा सीमित क्षेत्रक भाषा आ सीमित वर्गक भाषा कहि आरोप लगेबाक मौका देलक…. मुदा विगत किछु समय सँ कार्यक्रम मे विविधता आनि एकरा आरो-आरो क्षेत्र मे विस्तार देबाक, आनो-आनो वर्ग-समुदायक सर्जक केँ अवसर देबाक नीक काज शुरू कयल गेल अछि। एहि तरहें हमरा लोकनिक मातृभाषाक ‘अच्छे दिन’ आबि रहल अछि से कल्पना टा कय रहल छी। धरि जाबत अपन लोक मे स्वयं अपन मातृभाषाक प्रयोग सँ आत्मगौरवक बोध नहि आओत, ई सब अन्यान्य प्रयासक परिणाम बहुत सार्थक भऽ सकत, ई हमरा नहि बुझाइत अछि।
 
साहित्य अकादमीक नव संयोजक डा. प्रेम मोहन मिश्र विज्ञान विषयक प्राध्यापक रहितो मातृभाषाक माध्यम मे उच्च शिक्षा आर विशेष रूप सँ विज्ञान विषयक अध्ययन सेहो सुलभ अछि, तेकरा स्थापित करबाक लेल उच्च कक्षाक विज्ञान विषय सभक अनुवाद छात्र लोकनिक माझ राखि कतेक महत्वपूर्ण कार्य कयलन्हि ई बात स्वतः बुझल जाय योग्य भेल। मुदा हाय रे हमरा लोकनिक कथित बुद्धिजीवी मैथिल समाज आ विशेषतः अपना केँ साहित्यकार कहेनिहार सर्जकवर्गक महानुभाव लोकनि…. विज्ञान विषयक विद्वान् जे साहित्यक काज विज्ञान सँ जोड़िकय नव क्रान्ति अनबाक विशिष्ट काज कयलन्हि तिनकर खुलेआम कौचर्य करैत अपनहि सँ अपन बेटाक गला मे फाँसीक डोरी कैस रहल अछि। ओह! एहेन आत्मघाती दुर्व्यवहार सँ हम सब कहिया अपना केँ रोकि सकब? साहित्यकार समाजक लोक मात्र कल्याण कय सकितथि त एतेक समय यानि १९६५ ई. सँ २०१७ ई. धरि मे एतेक रास साहित्यकार प्रमुख (संयोजक) लोकनि एकरा कोना सीमित क्षेत्र ओ वर्गक भाषा बनाकय कंठ मोकने रहितथि? भाइ मनोज शांडिल्य जे एक लेखक-साहित्यकार रहितहु नीक जमीनी अभियान आदि सेहो संचालित करैत मैथिलीक जमीन केँ उपजाउ बनेबाक काज कयनिहार पर्यन्त एहि भ्रम मे देखेलाह आ कहलाह जे साहित्यकार जे मर्म बुझत से आन नहि…. घोर विस्मयकारी बात लागल ई। हुनका सँ फट दय पूछलियैन….
 
“यैह साहित्यिक मर्मज्ञता जे आइ धरि जनगणमन मे ‘मैथिल’ पहिचान तक स्थापित नहि कय सकल?
 
यैह साहित्यिक खोराक मैथिली साहित्यकार अपन जनता केँ खुआ सकलाह जे मिथिलाक अपन राजकीय सीमाक रक्षा नहि भऽ सकल?
 
आर त आर, यैह सरसता एहि साहित्यक बँटा सकल जे स्वयं मैथिलीभाषी केँ मैथिली भाषा बाजय लेल लज्जाक अनुभूति देलक?
 
मनोज शांडिल्य जी – कृपया मैथिली साहित्यकारक कि सब मर्मज्ञता सँ जोड़ि अपने बेर-बेर लिखैत छी से कनी टा खुलिकय हमर उपरोक्त प्रश्नक जनतब देल जाउ।
 
आर, पहिलुका प्रश्न त अनुत्तरित अछिये आइ धरि, ओहु पर ध्यान देबैक। अगबे हमरा लोकनि अपनहि टा बुद्धिक जोत सँ खेतक चास तैयार होएत देखबाक भूल सँ ऊबार कहिया धरि पायब, हम ताहि दिनक इन्तजार कय रहल छी।
 
साहित्य अकादमी पिछला समय अपन पहुँचक क्षेत्र बढा सकल अछि, ताहि पर कियो कतहु समीक्षा नहि लिखि सकलहुँ अछि।”
 
जबाब प्रतिक्षित अछि। ई आम सरोकारक विषय थिकैक। भाषा पहिचानक मूल आधार होइत छैक। तखन न आइ मातृभाषाक लेल शुरू संघर्ष एकटा नव देशक जन्म दय सकैत छैक। तखन न हमरा लोकनि वैह बांग्लादेशक निर्माण दिवस केँ अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस केर रूप मे मना रहल छी। आ कि खाली ‘तूँ हमर मुंह पोछ, हम तोहर मुंह पोछ, बस पोछिते काटब दिन हो, मैथिल चलल बेसुरपुरिया’ गीत गाबिकय दिन काटय लेल ई दिवस हम सब मनायब! विचारणीय अछि जे भाषा सँ जुड़ल प्रत्येक विधा केँ रोजी-रोजगार सँ जोड़बाक महत्वपूर्ण कार्य वास्ते उद्यमशीलताक, वैज्ञानिकता आ व्यवसायिकताक मर्म सेहो ओतबे आवश्यक अछि। सोएत बाभन, भलमानुष, बिकाउ, आ कि-कहाँदैन उपविभाजन मे जेना ब्राह्मण समाज पर्यन्त विभाजित भऽ मैथिल जनसमुदायक बहुत अहित पहिनहि कयलक, तेनाही भाषा आ साहित्य मे विभिन्न उपविभाजन आ एक-दोसर केँ नीचाँ देखेबाक प्रवृत्ति विरुद्ध हम सब नहि ठाढ होयब त परिणाम दुरूहो सँ दुरूह होयत। अस्तु!
अन्त मे, मैथिली भाषामे रोजगारक अवसर फिल्म, संचारकर्म, विज्ञापन, टेलिविजन धारावाहिक, नाटक, प्रहसन संग-संग गायन, चित्रकला, शिक्षा आ विभिन्न शीपमूलक स्वरोजगारक संस्कृति हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि मुख्यरूप सँ देखाइत अछि। सरकारी विज्ञापन सँ लैत निजी क्षेत्रक विज्ञापन केँ मैथिली भाषाक भित्ति-लेखन, पोस्टर, पम्पलेट, लघु फिल्म, जिंगल, एड फिल्म आदि मे उल्लेख्य बाजार रखबाक बात नेपालक मिथिलाक्षेत्र मे प्रचलित दर्जनों एफएम रेडियो आ टेलिविजन चैनल सब सिद्ध कय चुकल अछि। फिल्म सेहो कम बजट मे नीक आमदनीक मार्ग देखबैत अछि। एकर अलावे, भारत मे मैथिलीक वैकल्पिक विषय सँ हमरा लोकनि प्रशासनिक परीक्षा पास कय देशक सर्वोच्च प्रशासकीय पद पर पर्यन्त बहाली लय सकैत छी। विद्यालय मे शिक्षक आ एनजीओ केर ट्रेनर (प्रशिक्षक) आदि बनबाक अवसर सर्वविदिते अछि। मैथिली गीत-संगीत जाहि तरहें बाजार मे अपन स्थान बना रहल अछि, जेना यूट्युब पर सैकड़ों मोनिटाइज्ड चैनल सँ आमदनी कमायल जा सकैत अछि, बस एकटा उत्कृष्ट काज लोक केँ लाखों टकाक मालिक बना दैछ। अतः रोजगारक अवस्था कोना सृजित होयत, ताहि दिशा मे हम सब बेसी सँ बेसी काज करब त हमरो सभक मातृभाषा मैथिलीक आयू बढत।
 
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर सब केँ शुभकामना – कम स काम औझको दिन एतेक शपथ ली जे अपन भाषाक उत्कृष्टता केँ जनमानस मे स्थापित करबाक लेल एहि भाषा मे रोजगार कोना उत्पन्न होयत ताहि लेल अपन सामर्थ्यक प्रयोग करबाक काज करब। ॐ तत्सत्!
 
हरिः हरः!!