मिथिला स्तुति – वृहद् विष्णुपुराण

मिथिलाक महिला लेल सीपमूलक तालिम-प्रशिक्षणक आवश्यकता आइयो ओतबे जरुरी

मिथिला स्तुति

मिथिलाक महिला लेल सीपमूलक तालिम-प्रशिक्षणक आवश्यकता आइयो ओतबे जरुरी

हे मिथिला – बेर-बेर प्रणाम!!

ईश्वर प्रति सम्पूर्ण आस्थावान् रहैत अपन जन्म एहि मिथिला नामक तीर्थभूमि – तंत्रभूमि -सिद्धभूमि मे होयबाक लेल पुनः-पुनः आभार प्रकट करैत छी।

मिथिलाक स्तवन करब केहेन कल्याणकारी अछि से त देखू – म सँ मकार ब्रह्मा आर ताहि मे इकारान्त स्त्री यानि ब्रह्माणी (सरस्वती विराजित छथि, थ सँ थकार विष्णु सभक पालक आर संगहि इकारान्त स्त्री लक्ष्मी सहित छथि, ल सँ लयकर्ता महादेव आ संगमे आकारान्त स्त्री यानि पार्वती विराजैत छथि – एहि तरहें त्रिदेव अपन विशिष्ट त्रिशक्ति सहित समस्त परमात्माक संछिप्त परिचायक शब्द ‘मिथिला’ केँ हम पुनः प्रणाम करैत छी।

वृहद् विष्णुपुराण एहि मिथिलाक माहात्म्य गान करैत लिखैत अछि –

गंगाहिमवतोमध्ये नदी पंचदशान्तरे।
तैरभुक्तिरिति ख्यातो देशः परमपावनः॥
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्य वै।
योजनानि चतुर्विंशत् व्यायाम परिकीर्त्तितः॥
गंगाप्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतं वनम्।
विस्तारः षोडशः प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन॥
मिथिला नाम नगरो नामस्ते लोकविश्रुतः।
पंचमिः कारणैः पुण्या विख्याता जगतीव्रये॥

तदनुसार, हिमालयसँ गंगा धरि (उत्तर-दक्षिण) तथा कौशिकीसँ गण्डकी धरि (पूरब-पश्चिम) केर सीमामे अवस्थित अछि मिथिला भूमि। मिथिलाक सीमा २४ योजन लम्बा आ १६ योजन चौड़ा कहल गेल अछि, तदनुसार १९२ मील आ १२८ मील होएत अछि।

मिथिलाक गौरव-गरिमा अनन्त आ महिमामण्डित अछि। मिथिला-स्तुति विषयक निम्नांकित श्लोक केँ आत्मसात करैत पुनः प्रणाम करैत छी।

नित्यस्थली नित्यलीले नित्यधाम नमोऽस्तु ते।
धन्या त्वं मिथिले देवि ज्ञानदे मुक्तिदायिनी॥
रामस्वरूपे वैदेहि सीताजन्मप्रदायिनी।
पापविध्वंसिके मातर्भवबन्धविमोचिनी॥
यज्ञदान-तपोध्यान-स्वाध्याय फलदे शुभे।
कामिनां कामदे तुभ्यं नमस्यामो वयं सदा॥

अनुपम मिथिला नित्यलीला-भूमि, नित्यधाम तथा मोक्षदायिनी होयबाक कारण धन्य अछि। ई साक्षात् रामस्वरूपा विदेहपुरी, जानकी जन्मभूमि, पापमोचिनी एवं भवबन्धनसँ त्राण दियाबयवाली अछि। हे मिथिले! अहाँ यज्ञ-दान, तप-ध्यान आ स्वाध्यायक शुभफल देबयवाली आर भक्तक सब कामना पूरा करयवाली छी। ताहि सँ हम सभ क्यो अपनेकेँ प्रणाम करैत छी।

हरिः हरः!!