Home » Archives by category » Article » Satire (Page 3)

मधेश-शहीदक अपेक्षा आ पुरखाक भूल लेल माफीक संयोग
प्रसंगवश…. नेपाल मे किछु मास पूर्वे दुनियाक सबसँ बेसी दिन धरि चलयवला आन्दोलन समाप्त भेल। दर्जनों लोक एहि आन्दोलन मे शहादति देलक। आन्दोलनक स्वरूप पर सेहो घमर्थन चलैत रहल। राज्य द्वारा आन्दोलन केँ हिंसक आ आम जन केर हित विरुद्ध हेबाक बात कहल जाएत रहल। असन्तुष्ट पक्ष द्वारा दंभी सत्ताभोगी आ शासकवर्ग सँ अन्तिम युद्ध […]

कक्का जी के विचारः गरीबे न रहत तऽ गरीबी कैसे ना हँटत
व्यंग्य प्रसंग साभारः अपन मिथिला लिंकः https://www.facebook.com/apnmithilaa/photos/a.480691718763101.1073741827.480690508763222/660290944136510/?type=3&theater कक्का जी कहिन… भतिजा: कका हौ ! एगो बात पुछू ? कका : हँ ! बौआ जे पुछे के हबे पुछू ! भतिजा: मधेशके जमीन बहुत पैदावार बाला हई, बहुत फसल होई छै । तैयो हमरा आउर के गरीबी किए ना हटै छै ? मधेशी सबके अइसन हाल कैला […]

मुसरी द्वारा हाथीक उठक-बैठक
व्यंग्य प्रसंग एक बेर मुसरी हाथी केँ ४-५ बेर उठक बैठक करा देलकैक…… बात रहैक जे कोनो पुरान सनक ५ सितारा होटलकेर बार के कालीन तर मे रहयवला मुसरी कोनो गेस्ट द्वारा लेल गेल व्हिसकीक गिलास अपने पीलाक बाद कनी छोड़ि गेलापर ओ मुसरी चुटुर-चुटुर पीब लैत अछि आ ओकरा वैह बेसी भऽ जाएत छैक। […]

कोढिया चाहे हऽ: बियाह लेल गर्हुआर कनियां चाही
व्यंग्य प्रसंग एकटा एहेन कोढि लोक छल जे बंसी पाथि देने छलैक, आ अपने महारे पर छाहरिक गौर मे ओंघरा गेल छल। एकटा कोम्हरौ सऽ कोढियेक गौंआँ छौड़ा आबि ओकर बंसी मे माछ केँ खोंटी करैत देखि ओकरा उठेलकैक – हे रौ! ललित! उठ-उठ! देख माछ खाइ छौ तोहर बंसी मे। ललित ओकरा जबाब देलकैक […]

जंगलराजः कथा या यथार्थ
पौकेट के लोक – प्रवीण नारायण चौधरी, कथाकार भोरे-भोर राजाधानीक साफ-सुथरा आ हरा-भरा सड़कपर विधायक श्रीनारायण मंडल मार्निंग-वाकिंग मे अपन आदतिक मुताबिक दौड़ लगेलाक बाद थकावट केँ दूर करबाक लेल आब धीरे-धीरे चलैत वापसी अपन कोठी (घर)क दिशा मे आबि रहल छलाह। अचानक दु गोट नकाबधारी व्यक्ति ‘हय रुक! रुकि जो नहि तऽ गोली मारि […]

कन्हा कुकुर माँड़े तिरपितः नीति कथा
नीति कथा – राम बाबु सिंह, मधेपुर (कलुआही), मधुबनी किस्सा पिहानी सेहो हेबाक चाहि, आइ चलु एकटा किस्सा स्मृति में आबि रहल अछि, सोचलहुँ जल्दी सँ कलमबद्ध करबाक चाहि। लीय अहूँ सब सुनु:- प्राचीन काल में एकटा भरल पुरल गाम में सोझे सोझ दूटा पड़ोसी रहैत छलाह। दुनु अपन अपन विशिष्ट काज के लेल प्रसिद्ध […]

कि चाहीः भगवान् कि भोग?
नैतिक कथा – प्रवीण नारायण चौधरी अस्त-व्यस्त बाजार – दुपहरियाक बाद बेसीकाल एतुका एहने हाल होएत छैक, लोक सब अपन पसार तऽ भोरे सँ दुपहर धरि लगबैत रहैत अछि… मुदा आब खरीददार सबहक भीड़ बाजारक चारूकातक क्षेत्र सँ पूर्ण रूप मे आबि जेबाक कारणे कोनो पसारी केँ फुर्सत नहि रहैत छैक। सब पसार पर […]

सागर झा विदुषकः एकांकी नाटक (सन्दर्भः मिथिला आन्दोलन)
रोचक वार्ताः मिथिलाक सरोकार (साभारः फेसबुक पर चर्चा मुताबिक ई यथार्थ वार्ता) मैथिली एवं हिन्दी फिल्म केर संग-संग रंगकर्म एवं लेखन मे सेहो माहिर सागर झा – फूलपरास (मधुबनी) केर मूल निवासी आ दिल्ली मे कार्यरत बेसीकाल ‘मैथिली-मिथिला’ आन्दोलन पर सवाल ठाढ करैत रहैत छथि। हुनकर भावना मे यथार्थ सेवा करब बेसी नीक होएत छैक, […]

विधक विधान देखू, उन्टे पण्डितेजीक हार्ट फेल भऽ गेल
पंडितजी (मैथिली कथा) – सत्य नारायण झा, मैथिली कथाकार, पटना एक आदमी कए लौट्री मे पैसा लगेबाक बर आदत रहनि । ओ सदति काल लौट्री किनैत रहथि मुदा कहियो लौट्री नहि लगनि ।मुदा आदति नहि छुटनि ।भगबानक कृपा सँ एकबेर हुनका दस लाख रुपैयाक लौट्री लागि गेलनि । ई खबरि पहिने हुनक गृहणी कए लगलनि […]

मैथिली कथाः अठकपाड़ि
कथा – कर्ण संजय, विराटनगर ‘कि करै छी ऐ’ ? कने एमहर आउ त’ । ‘मारे मू‘ह धए क’, सभ किओ हमरे पेरनिहार । कि कहै छी ? कहु । हमर जीवन जंजाल भए गेल एहि घरमे’ । दिलवर काकी खौंझाइत बजलीह । ‘अहाँ करै छी कि ? कने डेटॉल लेने आउ ने’ । ‘सुतल छी […]